एक समय था जब गांव-शहरों में सुबह पक्षियों की चहचाहट से होती थी. घरों में चिड़िया के घोंसलों को भी जगह मिलती थी और हर छज्जे पर पक्षियों के लिए दाना-पानी रखा जाता था. लेकिन आज एक समय है जब लोग घरेलू गौरैया को देखने के लिए भी तरसते हैं.
जी हां, आधुनिकीकरण का एक सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह भी है कि शहर तो क्या गांवों से भी गौरैया गायब हो रही हैं. क्या आपको याद है कि कब आपने आखिरी बार अपने घर में या आसपास चिड़िया का चहचहाना सुना था? गौरैया की लुप्त होती प्रजातियों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए ही हर साल 20 मार्च को दुनियाभर में World Sparrow Day मनाया जाता है.
आज इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे हीरोज के बारे में जो इस तस्वीर को बदलने में जुटे हैं. जिन्हें आज Sparrow Men of India जैसे नाम से जाना जा रहा है.
1. मोहम्मद दिलावर, मुंबई
गौरैया संरक्षण का पर्याय बन चुके महाराष्ट्र के मोहम्मद दिलावर ने इस क्षेत्र में बहुत अभूतपूर्व काम किया है. उन्होंने साल 2005 से गौरैया का संरक्षण शुरू किया था. तब वह एक कॉलेज में पढ़ा रहे थे. लेकिन आज वह कई प्रोजेक्ट्स चला रहे हैं ताकि गौरैया के साथ-साथ प्रकृति को बचा सकें.
दिलावर ने नेचर फॉरएवर सोसाइटी (एनएफएस) नामक एक नॉन-प्रॉफिट संगठन शुरू किया जो सामान्य पक्षी प्रजातियों के संरक्षण पर केंद्रित है. गौरैया पर शोध करने के अलावा, दिलावर और उनकी संस्था ने नागरिकों को पक्षी की देखभाल के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. NFS की स्थापना के कुछ सालों में देश भर में 40,000 से ज्यादा लोग उनके साथ जुड़ गए.
2. राकेश खत्री, दिल्ली
राकेश खत्री 'नेस्ट मैन' के नाम से मशहूर हैं और अशोक विहार इलाके के रहने वाले हैं. वह लोगों को घोंसला बनाना सिखाते हैं और अब तक लाखों से ज्यादा छात्रों को सिखा चुके हैं. पक्षियों के लिए ये शेल्टर बनाने के लिए उन्हें कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं.
एएनआई से बात करते हुए, खत्री ने बताया कि उन्हें बचपन से ही पक्षियों के साथ खेलने का बहुत शौक था और तभी से उन्होंने पक्षियों के लिए घोंसला बनाना शुरू किया.
अब तक, वह अपने जीवन में 2.5 लाख से अधिक घोंसले बना चुके हैं. उन्होंने लाखों छात्रों को घोंसला बनाना सिखाया है. पहले तो लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे और कहते थे कि चिड़िया उनके बनाए घोंसलों में कैसे घुसेंगी. हालांकि, जब पक्षियों ने घोंसलों में प्रवेश करना शुरू किया, तो उन्होंने अपने घरों में घोंसला बनाना शुरू कर दिया.
3. रवींद्र नाथ साहू, ओडिशा
रवींद्र नाथ साहू पिछले कई सालों से ओडिशा के गंजम में समुंदर के किनारे स्थित अपने गांव पुरुनाबंधा में घरेलू गौरैया के संरक्षण के लिए लगातार काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर प्रयासों के कारण राज्य के कुछ हिस्सों में पक्षियों की आबादी में मामूली वृद्धि हुई है. साहू ने इस अभियान की शुरुआत 2007 में पुरुनाबंधा गांव से की थी.
अब उनका अभियान 17 जिलों में फैल चुका है. पुरुनाबंधा गांव में, 2007 में घरेलू गौरैया की आबादी सिर्फ सात थी, और यह अब 400 से अधिक हो गई है. कुछ अन्य स्थानों पर भी गौरैया की आबादी में बढ़ोतरी देखी गई है.
4. इंदरपाल बत्रा, वाराणसी
वाराणसी में जन्मे और पले-बढ़े इंदरपाल सिंह बत्रा ने अपने घर में 2500 से ज्यादा गौरैयों के लिए आशियाना बनवाया है. जलवायु परिवर्तन के कारण गौरैया की संख्या घटती देख, अपने परिवार के सहयोग से 18 सालों से ज्यादा समय से गौरैया के संरक्षण पर काम कर रहे हैं.
10-15 गौरैया से शुरुआत करके अब वह हजारों को घर मुहैया करा चुके हैं. बत्रा परिवार पक्षियों को घर के साथ-साथ दाना-पानी भी दे रहा है. उन्होंने अपने घर में मिट्टी के घोंसले लगाए हैं. आज उनके घर में करीब 200 घोंसले हैं.