देशभर में हर साल कृष्ण जन्माष्टमी या जिसे हम गोकुलाष्टमी के नाम से भी जानते हैं, बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है. लेकिन इस बड़े उत्सव से जुड़ी कई परंपराएं और रीति-रिवाज भी हैं. ये सभी एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग होते हैं.
उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में भगवान कृष्ण का जन्म बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. भक्त 'दही हांडी' कार्यक्रमों में शामिल होते हैं, जहां लड़के मक्खन या दही से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हैं. मंदिरों, विशेष रूप से वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर को खूबसूरती से सजाया जाता है, और भक्त भगवान के दर्शन के लिए वहां जाते है. (इंडिया टुडे फाइल फोटो)
गुजरात में, जन्माष्टमी 'रस लीला' प्रदर्शन के साथ मनाई जाती है, जहां भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्य, विशेष रूप से गोपियों के साथ उनकी चंचल बातचीत, को नृत्य और नाटक के माध्यम से दिखाया जाता है. लोग अपने घरों के बाहर रंगोली डिजाइन भी बनाते हैं.
'दही हांडी' परंपरा महाराष्ट्र में भी प्रचलित है, जहां 'गोविंदा' नाम का ग्रुप ऊंचाई पर लटकाई गई हांडी को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं. मुंबई, विशेष रूप से दादर और लालबाग जैसे क्षेत्रों में, इसे लेकर बड़ी बड़ी प्रतिस्पर्धी होती है.
पश्चिम बंगाल में, जन्माष्टमी को 'जन्माष्टमी' और 'नंदा उत्सव' के रूप में मनाया जाता है. भक्त आधी रात तक व्रत करते हैं और जब रात के 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म हो जाता है, तब वे अपना उपवास तोड़ते हैं. कृष्ण भगवान के लिए झूले को भी सजाया जाता है.
दक्षिणी राज्यों में, जन्माष्टमी को 'गोकुलाष्टमी' के रूप में मनाया जाता है. भक्त 'सीदाई' और 'मुरुक्कू' जैसी विभिन्न प्रकार की मिठाइयां और नमकीन तैयार करते हैं. वे चावल के आटे से पूजा वाले कमरे तक छोटे पैरों के निशान बनाते हैं, जो भगवान का प्रतीक होते हैं.
पंजाब और हरियाणा में, जन्माष्टमी 'रास लीला' प्रदर्शन के साथ मनाई जाती है. मंदिरों और घरों को फूलों और रंगोली से सजाया जाता है.
राजस्थान में, जन्माष्टमी को 'फूलों की होली' के साथ मनाया जाता है. भक्त मंदिरों में जाते हैं, और भगवान कृष्ण की मूर्तियों की शोभा यात्रा निकाली जाती है.
यूं तो भारत के अलग-अलग राज्यों में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, लेकिन कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा का भाव हर किसी में सामान ही रहता है.