बिहार, यूपी, झारखंड सहित देश के कई राज्यों में महापर्व छठ मनाने को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह है. यह पर्व अब विदेशों में भी मनाया जाने लगा है. यह लोकपर्व चार दिनों तक चलता है. सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है.
महिलाएं छठ पर्व पर 36 घंटे का निर्जला व्रत घर की खुशहाली और संतान की सलामती के लिए रखती हैं. पुरुष भी छठ व्रत को रखते हैं. आइए जानते हैं इस बार छठ पर्व कब से शुरू हो रहा है और किस दिन क्या होगा? इस लोकपर्व में दउरा, सूप और पांच ईख महत्व क्या है, इस बारे में भी हम आपको बताएंगे.
हर साल इस तिथि को मनाया जाता है छठ
हर साल छठ को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. इस साल यह चार दिवसीय पर्व 5 नंवबर 2024 को नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है. इसके बाद 6 नवंबर को खरना है. फिर 7 नवंबर को डूबते सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा. 8 नवंबर 2024 उगते सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ इस पर्व का समापन होगा. नहाय-खाय के दिन घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई करने के बाद वर्ती गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान-ध्यान के बाद सूर्यदेव की पूजा करते हैं.
इसके बाद घर में बिना लहसुन-प्याज का खाना बनाया जाता है. इस दिन व्रती कद्दू की सब्जी, लौकी-चने की दाल और भात (चावल) का सेवन करती हैं. नहाय-खाय के दूसरे दिन खरना होता है. इस व्रत रखने वाली महिलाएं गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान और ध्यान के बाद सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा करती हैं. खरना के दिन पूरे दिन महिलाएं निर्जला उपवास रहती हैं. शाम को गुड़ से बनी चावल की खीर बनाई जाती है. इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है. इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है. छठ महापर्व के तीसरे संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस पर्व के चौथे दिन यानी अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होता है
क्या है छठ पर्व पर दउरा का महत्व
छठ पर्व में बांस से बने दउरा का विशेष महत्व बताया गया है. इसे छठी मैया का प्रसाद माना जाता है. इसी बांस के दउरा में छठी मैया का प्रसाद रखा जाता है. इस दउरा के लेकर छठ व्रत करने वाले के घरवाले छठ घाट पर लेकर जाते हैं. इसमें छठी मैया का प्रसाद रखा होता है इसिलए इसकी पवित्रता का काफी ध्यान रखा जाता है.
क्यों किया जाता है सूप का इस्तेमाल
छठ में प्रकृति की पूजा की जाती है इसलिए इस पूजा में बांस के सूप के उपयोग का विशेष महत्व बताया गया है. बांस के सूप के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है. सूप से ही छठी मैया को भेंट दी जाती है. सूर्यदेव को जब अर्घ्य दिया जाता है तो बांस के सूप का ही उपयोग किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा में सूप का प्रयोग करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं. मुख्य रूप से छठ पूजा संतान के लिए ही किया जाता है. छठ में इस्तेमाल किया जाने वाला सूप बांस से बना होता है, जो कि इस बात का प्रतीक होता है कि जैसे जैसे बांस तेजी से बढ़े वैसे वैसे संतान की भी प्रगति हो.
छठी मैया का प्रिय फल है गन्ना
छठ पूजा में गन्ना यानी ईख को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. ईख के बिन छठ पूजा अधूरी मानी जाती है. व्रती महिलाएं नदी या सरोवर के किनारे बने छठ गाठ पर गन्ना को बांधकर सूर्यदेव की उपासना करती हैं. छठ पूजा के सूप में भी गन्ने के टुकड़े को रखा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि छठी मैया का प्रिय फल गन्ना है. उन्हें गन्ना चढ़ाने से समृद्धि प्राप्त होती है. इससे परिवार और रिश्तों में मिठास बनी रहती है. छठ पूजा के दौरान कई फलों को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. सुथनी फल भी छठी मैया को अर्पित किया जाता है.