Aaj Tak Dharm Sansad: महाकुंभ सिर्फ प्रयागराज में ही क्यों? स्वामी अवधेशानंद गिरी बताया

Mahakumb 2025: प्रयाराज में महाकुंभ के आगाज से पहले 'आज तक धर्म संसद' का आयोजन हुआ. इसमें जूना अखाड़े के महामंडलेश्ववर आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरी शामिल हुए. उन्होंने महाकुंभ का आयोजन और सनातन पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि पेशवाई, शाही स्नान जैसे चीजों का नाम बदलने का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि ये शब्द आक्रांता के बर्बर प्रभाव को दिखाते हैं. इनको हटाना चाहिए.

Swami Avdheshanand Giri
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:21 PM IST

प्रयागराज में महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित होने वाला है. इसकी शुरुआत से पहले प्रयागराज में 'आज तक धर्म संसद' का आयोजन हुआ. धर्म संसद के इस मंच पर जूना अखाड़े के महामंडलेश्ववर आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरी पहुंचे. उन्होंने महाकुंभ से लेकर सनातन से जुड़े सवालों के जवाब दिए. इस दौरान उन्होंने कहा कि महाकुंभ में मक्रर संक्रांति का पर्व कुछ दिन शेष है, कुंभ का आलोक है, सनातन के सूर्य की रश्मियां पूरे विश्व को आलोकित करने के लिए तत्पर हैं.

महाकुंभ में कब स्नान फलदायक होगा?
क्या महाकुंभ में किसी भी समय स्नान किया जा सकता है? इस सवाल पर आचार्य ने कहा कि जब से संत-महात्माओं के अखाड़ों की ध्वजाएं स्थापित हो गई हैं, उनका शिविरों में प्रवेश हो गया है, तब से ये मांगलिक कार्य और अनुष्ठान आरंभ हो गए हैं. जो हमारी आध्यात्मिक रीतियां हैं, उनके प्रयोग आरंभ हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि सिर्फ संगम में ही नहीं, इसके 5 कोस में कहीं भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है. इतने दायरे में कहीं भी डुबकी लगा लें तो मोक्ष या उधार की भावना सिद्ध होगी, जिस संकल्प से आए हैं, उसकी पूर्ति होगी. उन्होंने कहा कि 16 किलोमीटर के दायरे में घाट बनाए गए हैं. अगर आप आसपास में डुबकी लगा सकें तो आपका स्नान अधूरा नहीं माना जाएगा.

पेशवाई या शाही स्नान... नाम बदलना चाहिए?
पेशवाई या शाही स्नान का नाम बदलने की कोशिश रही. ये सार्थक है? इसपर उन्होंने कहा कि ये दासता के चिन्ह हैं, इसमें आक्रांताओं के बर्बर प्रभाव दिखाई देता है. अब हम स्वतंत्र हैं, हम सर्वथा समर्थ हैं. पूरा भारत विश्व का नेतृत्व करने के लिए तैयार है. ऐसे में पुराने प्रतीक हमें हटाने चाहिए. उन्होंने कहा कि शाही स्नान में मुगल काल में बादशाह कुछ अलग व्यवस्था देते होंगे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज सनातन विश्व की संपूर्ण चुनौती को स्वीकार करने तैयार है. सारी समस्याओं के निराकरण के लिए तैयार है. 

महाकुंभ प्रयागराज में ही क्यों?
4 जगह अमृत की बूंद गिरी, लेकिन प्रयागराज में ही महाकुंभ क्यों होता है? इस सवाल के जवाब में आचार्य ने कहा कि ये राशियों के कारण भी है. लेकिन ये महाकुंभ इसलिए है, क्योंकि यहां का वैशिष्ठ पुराण के काल से है और अमृत लेकर भागा था तो पहली बूंद यहां गिरी थी. इसलिए कुंभ का आरंभ यहां से हुआ था. इसलिए इसका वैशिष्ठ है. जबकि अर्धकुंभ सिर्फ यहीं होता है.

महाकुंभ 2025 में संत का संकल्प?
2025 के महाकुंभ से संत समाज कोई संकल्प या चर्चा की शुरुआत कर रहा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि पिछले कुंभ में संत समाज और देश राम मंदिर को लेकर व्याकुल थे कि हम निर्णय चाहते हैं कि राम मंदिर जल्द बने. अब मंदिर बन चुका है. धारा 370 हट चुका है. मैं ये कह सकता हूं कि संत बड़े उत्साहित हैं कि जो हमने चाहा था वो हो ही रहा है. अब हम इस देश की सनातन सत्ता को विश्व मंच पर ले जाना चाहते हैं. 

उन्होंने कहा कि पश्चिमी संस्कृति दुनिया को एक बाजार मानती है. जबकि सनातन संस्कृति दुनिया को एक परिवार मानती है. ये संसार बाजार नहीं है, परिवार है. हम पूरे मानवीय मूल्यों के जागरण के लिए तैयार हैं.

जाति भारत का सौंदर्य- आचार्य
क्या आप जातीय जनगणना जैसी चीजों से सहमत हैं? क्या ये बताने का तरीका होगा कि आप कितने के हकदार हैं या सिर्फ विभाजन का तरीका है? इस सवाल पर आचार्य ने कहा कि जो जातियों की बात कर रहे हैं, उनका खुद की जाति पता नहीं है. उनको अपनी कुलदेवी, कुलदेवता के बारे में पता नहीं है. उन्होंने कहा कि जातियां भारत का सौंदर्य हैं, भारत का ऐश्वर्य जातियों में है. जातियों का मतलब हमारे जो अलग-अलग कौशल थे. उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि भारत पूरा एक है. पहले हम हिंदू हैं.जातियों में बंटकर भी हम सनातनी हैं.

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