Maihar temple: 1063 सीढ़ियां, शिखर पर माता का मंदिर, हर सुबह आल्हा-ऊदल की पूजा... रहस्यमयी है मैहर माता का मंदिर

जिस तरह से भक्त पहाड़ों को पार करके वैष्णो देवी जाते हैं. उसी तरह से मध्य प्रदेश के मैहर में 1063 सीढ़ियों का सफर तय करने के बाद माता का दर्शन होता है. ज्ञान देवी मां शारदा का देशभर में इलकौता शक्तिपीठ है. यह विद्या की देवी मां सरस्वती का मंदिर है, जिन्हें मां शारदा भी कहा जाता है. कहते हैं कि युद्ध में पृथ्वीराज सिंह चौहान के कई बार दांत खट्टे करने वाले वीर योद्धा आल्हा ऊदल आज भी मां शारदा के प्रथम दर्शन और सुबह की पहली पूजा करते हैं.

1063 सीढ़ियां चढ़कर जाने पर मैहर माता का दर्शन होता है
gnttv.com
  • मैहर, मध्य प्रदेश,
  • 06 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:02 PM IST

देशभर में माता शारदा का अकेला मंदिर मैहर में है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि रोजाना आल्हा ऊदल अदृश्य रूप में मां शारदा की आरती करने के लिए आते हैं. पौराणिक कथाओं के मुताबिक ये मंदिर माता सती से जुड़ा है. ये मंदिर मैहर में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. ये मंदिर मैहर माता के नाम से फेमस है. मैहर का मतलब है मां का हार. त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है. मां शारदा देवी का मंदिर विंध्य की पर्वत श्रंखलाओं में से एक शिखर के मध्य में स्थित है. 

मैहर देवी की कथा-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थीं. उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी. वे शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे. फिर भी सती ने अपनी जिद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. लेकिन जान-बूझकर भगवान शंकर को नहीं बुलाया. शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं. यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा. इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे. इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी. भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकालकर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे. ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया. जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. कहते हैं कि यहां सती का हार और कंठ गिरा था. हार गिरने की वजह से इस देवस्थान का नाम मैहर पड़ा और कंठ गिरने से शारदा माता विराजीं, जो भक्तों को विद्या और सुरीला कंठ प्रदान करती हैं.

आल्हा ऊदल का किस्सा-
किंवदंती है कि आज भी रोज मां शारदा की सबसे पहले पूजा आल्हा करते हैं. आल्हा वो शख्सियत हैं, जिन्होंने कई मर्तबा पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया. उत्तरप्रदेश के महोबा में राजा परमाल के सेनापति रहे आल्हा और उनके भाई ऊदल ने 52 गढ़ की लड़ाइयां जीतीं. आल्हा का मंदिर शारदा माता की पहाड़ी के ठीक पीछे है.
ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. आल्हा और ऊदल ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था. यहां आज भी आल्हा का वो तालाब और अखाड़ा मौजूद है, जहां नहाने के बाद अपने भाई ऊदल के साथ मल्लयुद्ध का अभ्यास करते थे. कहा जाता है कि यह तालाब आल्हा ने अपने भाई के साथ मिलकर एक दिन में खोदा था. इसी तालाब के पानी से वो नित्य मां का जलाभिषेक करते हैं.

मंदिर में आदिगुरू शंकराचार्य करते थे पूजा-
मंदिर के पुजारी नितिन पांडेय ने कहा कि ये मंदिर बहुत ही प्राचीन है. यहां आदिगुरू शंकराचार्य जी पूजा करके गए थे, तब से ये मंदिर जाग्रत हुआ है. सभी को मालूम है कि कलियुग में माता ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया था. आल्हा-ऊदल दो भाई हुआ करते थे. उत्तर प्रदेश महोबा के रहने वाले थे। शारदा मां उनकी कुलदेवी थीं. दोनों भाई युद्ध में निपुण थे. पृथ्वीराज सिंह चौहान से भी उनका युद्ध हुआ था. जिसमें उन्होंने विजय प्राप्त की थी. उनको अचानक मां के प्रति लगाव हुआ और इधर आए वो. मंदिर के पीछे साइड में उनका अखाड़ा बना हुआ है. वहां पर दोनों भाई कुश्ती किया करते थे. वहीं तालाब बना है, जहां नहाकर प्रतिदिन मां की उपासना करने आते थे. उपासना से मां इतना प्रसन्न हुईं कि प्रकट होकर आल्हा को अमरता का वरदान दिया. जिसका प्रमाण आज भी मिलता है. आज भी पट खोलो तो ऐसा फूल जो कभी देखा न हो... कभी पट खोलो तो मां का वस्त्र गीला... घंटे बजने की आवाज... तो ऐसे नाना प्रकार के संकेत होते हैं कि आल्हा आज भी पहली पूजा यहां पर आकर करते हैं. ऐसा कहते हैं कि यहां मां का हार गिरा है. इसलिए इसका नाम मैहर पड़ा है. माँ शारदा, वीणा, बुद्धि की देवी हैं. हाथों में वीणा है. पुस्तक है. माला है.  हंस पर विराजमान हैं... पूर्ण रूपेण हैं मां शारदा. ऐसा हमारा मानना है कि ब्रम्हांड में ऐसी कोई चीज नहीं है, जो मां शारदा नहीं कर सकतीं. हमारी छठवीं पीढ़ी हो गई. हमने भी चमत्कार देखे हैं. जो कभी देख नहीं सकता, उसे मां ने आंख प्रदान की. जो कभी चल नहीं सकता, उसे मां ने पैर दिया है. मां ने महिलाओं की गोद भरी है.
(मैहर से योगितारा की रिपोर्ट)

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