भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)ने मंगलवार को पुरी जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार (कोषागार) के रखरखाव के लिए उसकी 3डी लेजर स्कैनिंग शुरू की. कहा जाता है कि रत्न भंडार में देवी-देवताओं के अनमोल रत्न और आभूषण संरक्षित हैं, जिनकी दीवारों और छत की मरम्मत की जरूरत है. शुरुआत में रत्न भंडार की स्थिति, स्टेस लेवल और दरारों को जानने के लिए इसकी बाहरी दीवार पर 3डी लेजर और फोटोग्रामेट्रिक सर्वेक्षण शुरू किया गया था. एएसआई की 15 सदस्यीय टीम उपकरणों के साथ मंदिर परिसर में दाखिल हुई और प्रक्रिया शुरू की.
तस्वीरें ले ली गई हैं
सर्वे के दौरान ASI की टीम अपने साथ एक कैमरा भी साथ ले गई थी जिससे कि वो 3डी तस्वीरें ले सके. अगर पत्थरों में कोई दरार होगी तो वह क्लिक की गई तस्वीरों से पता चल जाएगी. पुरातत्वविद् अधीक्षण दिबिशाद बी गार्नायक ने कहा कि तकनीकी टीम ने बाहरी दीवार पर 37 बिंदुओं की तस्वीरें ले ली हैं. उन्होंने कहा कि भौतिक संरचना की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए दस्तावेजीकरण किया जाएगा. अगर जरूरत पड़ी तो ASI इसके लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल कर सकता है. एएसआई की टीम जो भी जांच करेगी, उसकी रिपोर्ट SJTA को सौंपी जाएगी. एक टीम इसकी समीक्षा करेगी और फिर मरम्मत कार्य पर निर्णय रिपोर्ट के आधार पर लिया जाएगा.
मांगी थी अनुमति
बाहरी दीवार के अलावा, एएसआई रत्न भंडार की उत्तरी दीवार की लेजर स्कैनिंग करेगा, जो खजाने और गर्भगृह को जोड़ने वाला एक बिंदु है. एएसआई ने कहा कि रत्न भंडार की आंतरिक संरचना का लेजर मूल्यांकन अगले साल जून या जुलाई में रथ यात्रा के दौरान किया जाएगा जब खजाना निरीक्षण और ऑडिट के लिए खोला जाएगा. साल 2018 और 2022 में, एएसआई ने मंदिर प्रशासन से रत्न भंडार की आंतरिक और बाहरी दोनों सतहों का संरचनात्मक निरीक्षण (structural inspection) करने की अनुमति मांगी थी.
हर तरफ से बढ़ते दबाव के बीच, मंदिर प्रशासन ने इस साल अगस्त में अगले साल रथ यात्रा के दौरान अपने संरचनात्मक निरीक्षण और सूची के लिए मंदिर के खजाने को फिर से खोलने का फैसला किया. इस दौरान देवता गुंडिचा मंदिर में होते हैं.
खजाने में क्या-क्या था?
रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के कीमती आभूषण और खाने-पीने के बर्तन रखे हुए हैं. ये वो चीजें है जो भक्तों ने भगवान को चढ़ाई हैं. 12वीं सदी के बने इस मंदिर में तबसे ये चीजें रखी हुई हैं. इस भंडारघर के दो हिस्से हैं एक भीतरी एक बाहरी. रथ यात्रा के समय या त्योहार आदि के मौके पर बाहरी हिस्से को खोलकर इसी से भगवानों को सजाया जाता है.
वहीं मंदिर का भीतरी हिस्सा पिछले 38 सालों से बंद है. इसे आखिरी बार साल 1978 में खोला गया था. वहीं बात अगर इसकी कीमत की करें तो साल 2018 में एक सवाल के जवाब में कानून मत्री प्रताप जेपा ने कहा कि आखिरी बार यानी 1978 में इसमें 12 हजार भरी (1 भरी 11.66 ग्राम के बराबर होता है) सोने के गहने, 22 हजार भरी से कुछ ज्यादा के चांदी के बर्तन थे.