Ayodhya Ram Temple: किराए के मकान में रहता है कारसेवक रमेश का परिवार, राम मंदिर बनने पर है खुश... पुलिस फायरिंग में गई थी जान

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए कई लोगों ने कुर्बानी दी है. इसमें से एक नाम रमेश पांडेय का है. इनका परिवार आज अयोध्या में एक किराए के मकान में रहता है. परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. लेकिन मंदिर बनने से वो काफी खुश है. बेटे का कहना है कि पिता का सपना पूरा हो गया है.

राम मंदिर आंदोलन में कारसेवक रमेश पांडेय की मौत हुई थी
संतोष शर्मा
  • अयोध्या,
  • 05 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 5:13 PM IST

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है. लेकिन इस राम मंदिर के निर्माण के लिए कई लोगों ने कुर्बानी दी है. मंदिर आंदोलन के दौरान अपनी जान की कुर्बानी देने वाले एक कारसेवक रमेश पांडे थे. अयोध्या के रानी बाजार में इनका परिवार रहता है. रमेश पांडेय का परिवार राम मंदिर के निर्माण से खुश है. लेकिन परिवार को अपनों को खोने का गम भी है.

किराए के घर में रहती है फैमिली-
राम मंदिर आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले एक कारसेवक रमेश पांडेय थे. आज उनका परिवार अयोध्या के रानी बाजार की गलियों में एक किराए के मकान में रहता है. उस घटना को यादकर परिवार के सदस्यों के चेहरे पर दुख उभर आता है. 2 नवंबर 1990 को रमेश पांडेय की अपनी जान की कुर्बानी दी थी. 

पुलिस फायरिंग में गई थी रमेश की जान-
रमेश पांडेय के बेटे का नाम सुरेश है. जब उनके पिता की मौत हुई थी, तो वो एक साल के थे. लेकिन पिता की मौत की घटना के बारे में पड़ोसियों और अपनी मां से इतनी बार सुन चुके हैं कि वो उनको याद हो गई है. आज भी सुरेश पिता की मौत की घटना को याद करते हैं. 
कारसेवक रमेश पांडेय ईंट भट्ठे पर काम करते थे. सुरेश बताते हैं कि कैसे उनके पिता रमेश पांडेय राम मंदिर के लिए हुई कार सेवा में दिगंबर अखाड़े के पीछे से राम जन्मभूमि तक पहुंच गए ते. लेकिन अचानक पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी और वो शहीद हो गए.

तंगी में जी रहा परिवार-
रमेश पांडे की पत्नी गायत्री के लिए यह 33 साल बड़े कठिन थे. चार बच्चे थे. बड़ा बेटा सुभाष 9 साल का था, नीता 5 साल की थी, सुनीता 3 साल की और सुरेश एक से डेढ़ साल का था. जब राम मंदिर बनवाने के लिए भट्टे पर मजदूरी करने वाले रमेश पांडे को गोली मार दी गई थी.

इन 33 सालों के संघर्ष में बेटियों की शादी हो गई. बेटे भी प्राइवेट नौकरी कर किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं. लेकिन अब राम का मंदिर बन रहा है, तो बेटे सुरेश को लगता है, पापा जहां होंगे खुश होंगे, उनकी आत्मा को शांति मिलेगी कि चलो परिवार को अनाथ छोड़ा. लेकिन भगवान के लिए मंदिर बनाने के काम में आ गए. 

पिता को याद करते हुए भावुक हुए सुरेश कहते हैं कि मुझे तो उनका चेहरा भी याद नहीं, बस जो मम्मी ने बताया, जो लोगों ने बताया उतना ही जानता हूं. हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि राम मंदिर बनेगा. लेकिन अब मंदिर भी बन गया है.

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