हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है जो साल के 8 महीने तक महीने तक पानी में डूबा रहता रहता है. इतना ही नहीं यह मंदिर सिर्फ चार महीनों तक ही भक्तों को दर्शन देता है. इस मंदिर को बाथू की लड़ी के नाम से जाना जाता हैं. वहीं इस मंदिर को जिन पत्थरों से बनाया गया है उन्हें बाथू के पत्थर कहा जाता है. इस मंदिर के परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा आठ अन्य छोटे मंदिर बनाए गए हैं. इस मंदिर में शेषनाग, विष्णु भगवान और भगवान शिव की मूर्तियां स्थापित हैं.
बाथू की लड़ी मंदिर की स्थापना
इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं. कुछ कई लोगों का कहना है कि बाथू की लड़ी मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान किया गया था. वहीं यह भी कहा जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर से स्वर्ग जाने तक की सीढ़ियां भी बनाई थी. इन सीढ़ियों का निर्माण उन्हें एक रात में करना था. फिर पांडवों ने स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाने के लिए भवन श्रीकृष्ण से मदद मांगी थी. श्रीकृष्ण ने 6 महीने की एक रात कर दी. उसके बावजूद स्वर्ग की सीढ़ियां तैयार नहीं हो सकीं. पांडवों का कार्य सिर्फ अढ़ाई सीढ़ियों से अधूरा रह गया और सुबह हो गई थी. आज भी स्वर्ग जाने वाली सीढ़ियाँ दिखाई देती है. आज भी इस मंदिर में स्वर्ग को जाने वाली 40 सीढ़ियाँ मौजूद हैं.
इस महीने में कर सकते हैं मंदिर के दर्शन
मंदिर के आसपास का नजारा बेहद मनोरम हैं. वहीं मंदिर के पास के इलाके को भारत सरकार ने प्रवासी पक्षियों को आश्रय के लिए संरक्षित कर रखा है. अगर आप इस मंदिर के दर्शन करना चाहते है तो यहां आने का उचित समय अप्रैल से जून महीना हैं. बाकी के महीने यह मंदिर पानी के अंदर रहता है. इस दौरान मंदिर का केवल ऊपरी हिस्सा ही दिखाई देता है.
मंदिर के आसपास दृश्य मनोरम
मंदिर के आसपास का इलाका बेहद मनोरम हैं. इस मंदिर के आसपास छोटे-छोटे टापू बने हुए हैं. इनमे से एक पर्यटन की दृष्टि से रेनसर नाम से प्रसिद्ध है. जहां पर फारेस्ट विभाग के कुछ रिजॉर्ट्स हैं. जहां पर पर्यटन के रुकने के उचित व्यवस्था हैं.
ऐसे पहुंचे मंदिर
इस मंदिर तक आप सड़क मार्ग तक पहुंच सकते हैं. यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की तहसील ज्वाली के अंतरगर्त आता हैं. बाथू की लड़ी मंदिर लहसिल मुख्यालय ज्वाली से करीब 16 किलोमीटर दूर हैं. बाथू की लड़ी मंदिर तक कार द्वारा वाया केहरियां-ढन-चलवाड़ा-गुगलाड़ा सम्पर्क मार्ग पहुंचा जा सकता हैं.