बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने शिरडी (Shirdi) के 159.12 करोड़ रुपये के डोनेशन पर टैक्स में छूट दी है. कोर्ट ने कहा कि ये ट्रस्ट एक धार्मिक और चैरिटेबल संस्था है, इसलिए इसमें टैक्स छूट दी जानी चाहिए.
दरअसल, ये मामला साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट का है. शिरडी में जो "हुण्डी" (धार्मिक स्थलों पर रखे गए डोनेशन बॉक्स ) रखा जाता है, उसमें करोड़ों का डोनेशन आया है. लेकिन ये सब बिना नाम वाला डोनेशन है.
डोनेशन बॉक्स में साल 2015-16, 2017-18, और 2018-19 के दौरान ₹159.12 करोड़ आए हैं. इसे ही देखते हुए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इसपर टैक्स लगाने की मांग की थी. विभाग का तर्क था कि ट्रस्ट इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80G के तहत रजिस्टर्ड है. ऐसे में चैरिटेबल डोनेशन पर टैक्स में छूट मिलती है, लेकिन बिना नाम वाले पैसे पर टैक्स देना होता है. ऐसे में संस्था को टैक्स देना चाहिए.
ट्रस्ट ने इस दावे का खंडन किया और कहा कि वह एक धार्मिक और चैरिटेबल संस्था दोनों है. ट्रस्ट ने तर्क दिया कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 115BBC(2)(b) के तहत धार्मिक और चैरिटेबल संस्थाओं को बिना नाम वाली डोनेशन पर टैक्स से छूट दी जाती है.
अपने बचाव में, ट्रस्ट ने कहा कि उसकी कुल आय का केवल 0.49% धार्मिक गतिविधियों पर खर्च किया गया, जो यह दिखाता है कि उनका प्राथमिक ध्यान सामाजिक कल्याण सेवाओं, जैसे मंदिर रखरखाव और भक्तों के लिए सुविधाओं, पर है.
इसे लेकर हैं कई कानून
इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) की धारा 115BBC बिना नाम वाली डोनेशन से जुड़ी है. धारा 115BBC(1) के तहत, चैरिटेबल संगठनों को जो बिना नाम वाले डोनेशन किए जाते हैं, उनपर टैक्स लगता है. वहीं, इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80G के तहत व्यक्ति जो भी चैरिटेबल संगठनों को डोनेशन देता है, उसपर उन्हें टैक्स में छूट मिलती है.
हालांकि, शिरडी वाले मामले में मुंबई में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (छूट) ने यह तर्क दिया कि ट्रस्ट का धारा 80G के तहत रजिस्ट्रेशन हुआ है, जो बताता है कि वह एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, और इसलिए, बिना नाम वाली डोनेशन पर टैक्स लगाया जाना चाहिए.
कोर्ट ने किए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सभी तर्क खारिज
जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और जस्टिस सोमशेखर सुंदरसेन की बेंच ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के तर्कों को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अक्टूबर 2023 के फैसले को दोहराया कि साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट को किया गया बिना नाम वाला डोनेशन टैक्स योग्य नहीं हैं, क्योंकि ट्रस्ट एक धार्मिक और चैरिटेबल संस्था के रूप में काम कर रहा है.
कोर्ट ने कई जरूरी टिप्पणियां और फैसले दिए
-कोर्ट ने ट्रस्ट के इस दावे को बरकरार रखा कि वह धार्मिक और चैरिटेबल दोनों चीजों में शामिल है, इसलिए धारा 115BBC(2)(b) के तहत टैक्स में छूट मिलनी चाहिए.
-हाई कोर्ट ने यह साफ कहा कि भले ही इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80G के तहत ये ट्रस्ट रजिस्टर्ड हो, लेकिन ऐसा होने से इसकी टैक्स छूट की पात्रता खत्म नहीं हो जाती. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि धारा 80G और धारा 115BBC अलग-अलग तरह से इस्तेमाल होती हैं. धारा 80G के तहत रजिस्टर्ड होने का मतलब यह नहीं है कि ट्रस्ट को धार्मिक संगठन के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती.
-कोर्ट का तर्क था कि धारा 80G केवल चैरिटेबल संस्थानों पर लागू नहीं होती है, धार्मिक संस्थानों पर भी इसे लागू किया जा सकता है.
कोर्ट ने आगे कहा कि साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट धार्मिक उद्देश्य की परिभाषा पर पूरी तरह से फिट बैठता है. 1953 में अपनी स्थापना के बाद से, ट्रस्ट लगातार धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों से काम कर रहा है.
कौन से मंदिर देते हैं ज्यादा टैक्स?
तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे धनी मंदिरों में से एक है. तिरुमला तिरुपति देवस्थानम इस मंदिर को चलाता है. इसमें बड़ी मात्रा में डोनेशन आता है. धार्मिक प्रकृति के बावजूद, होटलों और कमर्शियल बिक्री से होने वाली इनकम पर टैक्स लगाया जाता है. रिपोर्टों के अनुसार, TTD ने पिछले कुछ सालों में कई करोड़ रुपये का टैक्स चुकाया है.
इसके अलावा, मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर से भी दान और चढ़ावे से काफी रिवन्यू आता है. हालांकि इस रिवेन्यू का बड़ा हिस्सा टैक्स फ्री होता है.