Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि के चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा, जानिए विधि से लेकर मां को प्रसन्न करने का उपाय तक सबकुछ

नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है. माता कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के दुख दूर होते हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है. माता कूष्मांडा को ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार माता कूष्मांडा ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी.

मां कूष्मांडा
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 25 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 8:05 AM IST

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है. शास्त्रों की मानें तो मां दुर्गा ने अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन इसी स्वरूप में किया था. मां कूष्मांडा को तेज की देवी का प्रतीक माना जाता है. मां के दर्शन और पूजन से सभी प्रकार के रोग-शोक का हरण होता है और यश, बल और धन की प्राप्ति होती है.

मां की 8 भुजाएं हैं जिनमें क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा रहता है. आठवें हाथ में जपमाला है. मां की सवारी सिंह है. काशी में देवी के प्रकट होने की कथा राजा सुबाहु से जुड़ी हुई है. चूंकि माता को हरा रंग अति प्रिय है इसलिए आज के दिन इस रंग के वस्त्र धारण करने से मां आप पर कृपा बरसाएगी.

मां कूष्मांडा पूजा मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

मां कूष्मांडा की पूजा विधि
इस दिन प्रातः काल स्नान आदि करके माता कूष्मांडा का ध्यान करना चाहिए. इसके बाद उनको गंगाजल से अभिषेक कराके लाल वस्त्र, लाल रंग के फूल, अक्षत, सिंदूर, पंचमेवा, नैवेद्य, श्रृंगार सामग्री अर्पित करें. इस दौरान माता कूष्मांडा के मंत्र का निरंतर उच्चारण करते रहें. माता कूष्मांडा को दही और हलवे का भोग लगाएं. यदि आपके पास सफेद कुम्हड़ा है. तो उसे माता रानी को अर्पित कर दें. इसके बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी का दीपक या कपूर जलाकर माता कूष्मांडा की आरती करें.

उपाय जिससे प्रसन्न हो जाएंगी मां
मां को भोजन में दही और हलवे का भोग लगाएं. इसके बाद उन्हें फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें. इससे मां कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं. कूष्‍मांडा का अर्थ है कुम्‍हड़ा, जिससे पेठा तैयार होता है. माता कूष्‍मांडा की पूजा में कुम्‍हड़ा की बलि देने से माता अत्‍यंत प्रसन्‍न होती हैं.

 

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