चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से यानी 9 अप्रैल से हो गई है. जबकि 17 अप्रैल को महानवमी के साथ इसका समापन होगा. नवरात्रि में आदिशक्ति मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. आदिश्कित की उपासन के कई नियम और विधियां हैं. मान्यता है कि आदिशक्ति की पूजा करने से हमारे संकट दूर होते हैं और मां की विशेष कृपा होती है. नवरात्रि के पहले दिन यानी 9 अप्रैल को मां शैलपुत्री की पूजा होती है.
मां शैलपुत्री की कथा-
पौराणिक कथा के मुताबिक मां शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था. इसी वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए शैलपुत्री तपस्या की. तपस्या के बाद भगवान शिव प्रकट हुए और मां शैलपुत्री को वरदान दिया. पूर्व जन्म में शैलपुत्री का नाम सती था. एक बार सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाया. इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा. लेकिन सती और शिव को निमंत्रण नहीं भेजा. इसलिए भगवान शिव नहीं जाना चाहते थे.
भगवान शिव ने सती से कहा कि उनको आमंत्रण नहीं मिला है. इसलिए वहां नहीं जाना चाहिए. लेकिन सती नहीं मानीं और पिता दक्ष के घर पहुंचीं. लेकिन सती को पिता के घर कोई आदर नहीं मिला. हर किसी से सती से मुंह फेर लिया. पिता ने भी उनका अपमान किया. इससे आहत सती ने यज्ञ में कूदकर आहुति दे दी और भस्म हो गईं. जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो वे क्रोधित हो गए. उनके गुस्से की ज्वाला से यज्ञ बर्बाद हो गया. बताया जाता है कि सती ने फिर से हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और इस वजह से उनको शैलपुत्री कहा जाता है.
कैसे करें शैलपुत्री की पूजा-
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की होती है. मां शैलपुत्री का चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें. मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु बेहद प्रिय हैं. इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पित किया जाता है. अब षोडोपचार विधि से मां शैलपुत्री की पूजा करें. इस दौरान मां शैलपुत्री को कुमकुम, चंदन, सिंदूर, पान, हल्दी, सुपारी, लौंग, नारियल और 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें. उसके बाद मां शैलपुत्री के बीज मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती करें.
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