Char Dham Yatra 2025: केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिर का कपाट किस दिन खुलेगा... कब से कर सकेंगे गंगोत्री-यमुनोत्री के दर्शन... चार धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु यहां जानिए सबकुछ

Kedarnath Dham Yatra: हर साल चार धाम की यात्रा सिर्फ 6 महीने तक चलती है. ठंड के मौसम में भारी बर्फबारी होने के कारण केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. ग्रीष्म ऋतु आते ही इन मंदिरों के कपाट खोल दिए जाते हैं. कपाट खोलने की तिथि का ऐलान हो चुका है.  श्रद्धालु चार धाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 2 मार्च 2025 से करा सकते हैं.

Kedarnath Dham (File Photo: PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:29 PM IST
  • चार धाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 2 मार्च से
  • सिर्फ छह महीने तक चलती है चार धाम यात्रा 

हिंदू धर्म में चार धाम केदारनाथ (Kedarnath), बद्रीनाथ (Badrinath), गंगोत्री (Gangotri) और यमुनोत्री (Yamunotri) की यात्रा का विशेष महत्व है. इस साल कब से शुरू होगी चार धाम यात्रा (Char Dham Yatra 2025) इसका ऐलान किया गया है. आइए इस यात्रा से जुड़ी हर जानकारी जानते हैं. 

आपको मालूम हो कि हर साल चार धाम की यात्रा सिर्फ 6 महीने तक चलती है. ठंड के मौसम में भारी बर्फबारी होने के कारण केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. ग्रीष्म ऋतु आते ही इन मंदिरों के कपाट खोल दिए जाते हैं. इस दौरान श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं.

कब खुलेंगे मंदिरों के कपाट 
1. केदारनाथ मंदिर का कपाट 2 मई 2025 को सुबह 6:20 बजे खुलेगा. श्रद्धालु को दर्शन करने के लिए सुबह 7 बजे से प्रवेश मिलेगा. 
2. 23 अक्टूबर 2025 को केदारनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जाएगा.
3. यमुनोत्री मंदिर श्रद्धालुओं के लिए 30 अप्रैल 2025 को खुल जाएगा. तीर्थयात्री गंगोत्री के दर्शन भी 30 अप्रैल से कर सकते हैं. 
4. बद्रीनाथ मंदिर का कपाट 4 मई 2025 से श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल जाएगा.

इस दिन से करा सकते हैं रजिस्ट्रेशन
श्रद्धालु चार धाम यात्रा के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. रजिस्ट्रेशन 2 मार्च 2025 से शुरू होगा. भक्त उत्तराखंड सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण कर सकते हैं. हिंदू धर्म में मान्यता है कि चार धाम की यात्रा करने से व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं और मोझ की प्राप्ति होती है. चार धाम की यात्रा पर हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं. 

छह महीने बाद भी जलता हुआ मिलता है दीप
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत शृंखलाओं के बीच केदारनाथ मंदिर स्थित है. केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यहां भगवान शिव  के पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं. ऐसी मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ का दर्शन नहीं किया जा सकता. कहा जाता है कि मंदिर के कपाट बंद करते समय एक दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है. छह महीने बाद जब कपाट खोले जाते हैं तब ये दीप जलता हुआ मिलता है.

पहले की जाती है भैरवनाथ की पूजा
केदारनाथ की पूजा-अर्चना से पहले भैरवनाथ की आराधना की जाती है. भैरवनाथ के कपाट खुलने के बाद ही केदारनाथ मंदिर में पूजा-आरती होती है. मान्यता है कि केदारनाथ धाम में जब कपाट बंद होते हैं तो 6 माह तक भैरवनाथ ही मंदिर समेत संपूर्ण केदारपुरी की रक्षा करते हैं. भैरवनाथ की पूजा के बाद ही धाम की यात्रा शुरू होती है.

कैसे खोला जाता है केदारनाथ मंदिर का कपाट 
केदारनाथ मंदिर का कपाट नियमानुसार खोला जाता है. पहले इसको खोलने को लेकर दिन तय किया जाता है. इस साल कपाट खुलने से पहले 27 अप्रैल को ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में भैरवनाथ की पूजा की जाएगी. फिर केदारनाथ बाबा की डोली केदारनाथ धाम के लिए प्रस्थान करेगी. बाबा केदार की डोली 28 अप्रैल को गुप्तकाशी जाएगी.

इसके बाद यहां 29 अप्रैल को फाटा और 30 अप्रैल को बाबा केदारनाथ की डोली गौरीकुंड पहुंचेगी. बाबा केदारनाथ की डोली 1 मई के दिन केदारनाथ पहुंचेगी. इसके बाद 2 मई को सुबह में केदारनाथ मंदिर के कपाट खोल दिया जाएगा. केदारनाथ में पूजा शैव लिंगायत विधि से की जाती है. केदारनाथ यात्रा पर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच माना जाता है.

क्या है केदारनाथ की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया. मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. इसके पीछे एक कथा भगवान शिव के पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें हत्या मुक्त करने की भी है.

महाभारत युद्ध में विजय के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे. इसके लिए वो भगवान भोलेनाथ को खोजते हुए केदार तक पहुंच गए. ये जानकर भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया ताकि उन्हें पहचाना नहीं जा सके. अंतर्ध्यान होने के समय भीम बैल के कूबड़ को पकड़ भोलेनाथ को पहचानने में सफल रहे. पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाप मुक्त कर दिया. तभी से बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ धाम में पूजा जाता है.

 

Read more!

RECOMMENDED