Chhath 2022: छठ पूजा का दूसरा दिन आज, खरना के बाद शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला उपवास

4 दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में सूर्य देव के साथ, उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देने की परंपरा है. सूर्य की पत्नी ऊषा को उदय और प्रत्युष को अस्त की देवी माना जाता है.

chhath puja 2022
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST
  • द्वापर युग में सूर्य पुत्र कर्ण जल में खड़े होकर सूरज को अर्घ्य दिया करते थे.
  • छठ से जुड़ी धार्मक मान्यताओं पर श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है

कार्तिक माह की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ त्योहार न केवल हमारी सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं और आस्था का अनन्य अभिलेख है बल्कि ये प्रकृति के प्रति हमारे आदर का प्रतीक भी है. सनातन इतिहास के प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद में सूर्य को जगत की आत्मा, शक्ति और चेतना कहा गया है और छठ, उन्हीं भुवन भास्कर की भक्ति का त्योहार है.

खरना के बाद शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला उपवास

कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को, नहाय खाय के साथ ये कठोर व्रत शुरू होता है. पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन होता है खरना, जब व्रती पूरी पवित्रता के साथ, सूर्य देव को अर्पित करने के लिए, मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जला कर, अपने हाथों से गुड़, चावल और दूध की खीर का प्रसाद तैयार करते हैं. इस साल खरना 29 अक्टूबर 2022 (शनिवार) को है.  खरना के अगले दिन नंगे पांव पवित्र नदी की लहरों में उतरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. और चौथे दिन उगते सूर्य की उपासना के साथ आस्था के इस महापर्व का समापन होता है.

छठ का पौराणिक महत्व

4 दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में सूर्य देव के साथ, उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देने की परंपरा है. सूर्य की पत्नी ऊषा को उदय और प्रत्युष को अस्त की देवी माना जाता है. मानव इतिहास के अलग-अलग कालखण्डों में, दुनिया की अनेकों संस्कृतियों में, उदय होते सूर्य को पूजने का उल्लेख तो कई रूपों में मिलता है लेकिन ये अपने आप में कितना अनोखा है, कि संसार का ये ऐसा इकलौता पर्व है, जिसमें अस्ताचलगामी सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा है.

पौराणिक ग्रंथों में छठ का सीधे तौर पर कहीं ज़िक्र भले न मिलता हो लेकिन इससे जुड़ी मान्यताओं और रीतियों का उल्लेख सनातन धर्म के इतिहास में प्रमुखता से किया गया है. माना जाता है कि त्रेता युग में लंका विजय कर लौटने के बाद श्रीराम ने, राम राज्य की स्थापना के संकल्प के साथ, 6 दिनों बाद यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था. भगवान राम ने अपने राज्य की स्थापना और संचालन से पहले सूर्य देव की उपासना की थी. माना जाता है कि द्वापर युग में सूर्य पुत्र कर्ण जल में खड़े होकर सूरज को अर्घ्य दिया करते थे. एक मान्यता ये भी है कि अंगराज कर्ण की सूर्य उपासन की वजह से ही बिहार झारखंड के कई क्षेत्रों में सूर्य की पूजा और छठ पर्व की परंपरा का उद्गम हुआ.

द्रौपदी ने अखण्ड सौभाग्य के लिए रखा था छठ का व्रत

इसी तरह महाभारत से जुड़ी हुई एक मान्यता ये भी है कि द्रौपदी अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए छठ तिथि पर पर व्रत रखकर ये पर्व मनाया करती थीं. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, छठी देवी ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं. इन्हीं को प्रसन्न करने के लिए छठ पूजा का आयोजन किया जाता है. पुराणों के अनुसार जब ब्रह्माजी सृष्टी की रचना कर रहे थे तब उन्होंने अपने आपको दो भागों में बांट लिया था. ब्रह्माजी का दांया भाग पुरुष और बांया भाग प्रकृति के रूप में सामने आया. प्रकृति सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी बनीं, जिनको प्रकृति देवी के नाम से जाना गया. प्रकृति देवी ने अपने आपको 6 भागों में विभाजित कर दिया और उनके छठे अंश को मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी पड़ा, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है.

कार्तिक महीने में सूर्य की पूजा का विशेष महत्व

पौराणिक कहानियां अपनी जगह है लेकिन जनमानस में ये त्योहार पूरे परिवार और खास तौर पर बच्चों के आरोग्य और सफ़लता की मंगलकामना का पर्व है. षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होता है. संतान प्राप्ती और उसकी आयु की रक्षा दोनों हो जाती है. जहां छठ से जुड़ी धार्मक मान्यताओं पर श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है तो वहीं दूसरी तरफ़ छठ त्योहार और सूर्य उपासना का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है. सूर्य, पृथ्वी पर ऊर्जा यानि शक्ति का एकमात्र स्रोत है. ऐसे में आरोग्य लाभ के लिए कार्तिक महीने में सूर्य की पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है.
 

 

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