Chhath Puja 2022: आज दिया जाएगा डूबते सूरज को अर्घ्य, जानिए शुभ मुहूर्त

नहाय-खाय के साथ शुरू होने वाले छठ पर्व का समापन सप्तमी की सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ होता है. छठ की शाम, ढलते सूरज को अर्घ्य देकर लोग अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं, और फिर शुरू होता है छठ के आखिरी दिन का इंतज़ार. छठ के अंतिम दिन आस्था अपने चरम पर होती है. सूर्य की पहली किरण उगने के साथ ही लोग, नंगे पैर पवित्र नदी में उतरकर, उगते सूरज को अर्घ्य अर्पित करते हैं. इसके साथ ही छठ महापर्व का समापन हो जाता है.

Chhath Puja 2022
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 9:52 AM IST
  • सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य
  • व्रती पूरे 36 घंटे का रखती हैं निर्जला व्रत

देशभर में छठ महापर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड जैसे राज्यों में इस पर्व की धूम देखने को मिलती है. लेकिन सिर्फ भारत नहीं बल्कि छठ महापर्व की लोकप्रियता आज विदेशों तक देखने को मिलती है. छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में से एक होता है. इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है. इतना ही नहीं व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. छठ व्रत की शुरुआत नहाए खाय के साथ होती है. छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है. 

खरना के बाद निर्जल व्रत होता है शुरू
छठ पूजा के नियम पूरे चार दिनों तक चलते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूजा पूरी होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है. इसे नहाय खाय भी कहा जाता है. इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन नदी या तालाब में पूजाकर भगवान सूर्य की उपासना की जाती है. संध्या में खरना करते हैं. खरना में खीर और बिना नमक की पूड़ी आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. खरना के बाद निर्जल व्रत शुरू हो जाता है. 

इन फल को रखकर दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य
कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती महिलाएं उपवास रहती हैं और शाम नें किसी नदी या तालाब में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. ये अर्घ्य एक बांस के सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है. कार्तिक शुक्ल सप्तमी की भोर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती है.

छठ पूजा का पौराणिक महत्व
छठ की महिमा आदिकाल से चली आ रही है. इसका जिक्र रामायण और महाभारत में भी मिलता है. रावण वध के पाप से मुक्ति के लिए प्रभू राम और माता सीता ने कार्तिक महीने में सूर्य उपासना की थी. वहीं द्रोपदी ने पांडवों को राजपाठ वापस दिलाने की प्रार्थना सूर्यदेवे से की थी. साथ ही कर्ण के भी सूर्य उपासना को छठ से जोड़कर देखा जाता है. 

छठ पूजा के संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त
कहते हैं जो इस महा व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. मान्यता है कि आप इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन करेंगे, छठी मैया आपसे उतना ही प्रसन्न होंगी. इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 30 अक्टूबर की शाम को 5 बजकर 34 मिनट पर दिया जाएगा. अस्ताचलगामी सूर्य देव को सायंकालीन अर्घ्य: शाम 5:29 से 5:39 बजे तक. वहीं उगते सूर्य को अर्घ्य 31 अक्टूबर को दिया जाएगा. 31 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 6 बजकर 29 मिनट पर होगा. प्रात कालीन अर्घ्य देने का समय सुबह 06:27 से 06:34 बजे है.

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