लोकआस्था का महापर्व छठ को लेकर घरों में तैयारी शुरू हो गई है. व्रती सूप, डाला व अन्य पूजन सामग्री की खरीदारी जोर-शोर से कर रही हैं. हर तरफ छठी मैया के गीत सुनाई पड़ रहे हैं. छठ व्रतियों का कहना है कि व्रत करने की परंपरा घर में एक बार शुरू होती है तो वह बंद नहीं होती. सास जब इस व्रत को करने में असमर्थ हो जाती है तो वह अपना व्रत बहू को दे देती हैं, उसके बाद से घर की बहुएं इस परंपरा को आगे बढ़ाती हैं. कई बार सास-बहू साथ में भी व्रत का अनुष्ठान करती हैं. जिन महिलाओं की सास जीवित रहती हैं, वह यह व्रत अपनी सास से ही लेती हैं, वहीं जिनकी सास नहीं होती वह पहली बार छठ अपने मायके जाकर करती हैं. घर में कोई दुखद घटना होने पर लोग एक साल तक छठ नहीं करते, लेकिन अगले साल से पुन: व्रत शुरू हो जाता है.
छठ पर गाए जाने वाले प्रमुख गीत ः
प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों छठ गीत गाए जाते हैं. जिनमें प्रमुख हैं...
1. कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए...
2. केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय...
3. सेविले चरन तोहार हे छठी मैय्या, महिमा तोहर अपार...
4. उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर, निंदिया के मातल सुरुज अंखियो न खोले हे...
5. चार कोना के पोखरवा...
महिलाएं ही नहीं पुरुष भी रखते हैं व्रत
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है. संतान की चाहत रखने वाली और संतान की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं. पुरुष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए छठ व्रत रखते हैं.