Dev Deepawali 2023: क्यों मनाई जाती है देव दीपावली, क्या है इसका धार्मिक महत्व? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Dev Deepawali Shubh Muhurat: कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को हर साल देव दीपावली मनाई जाती है. हिंदू धर्म में दिवाली की तरह देव दीपावली का भी बहुत ज्यादा महत्व है. मान्यता है कि इस दिन देवतागण धरती पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं.

देव दीपावली 2023
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:20 PM IST
  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ रविवार दोपहर 03 बजकर 52 मिनट से
  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि का समापन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर

हिंदू धर्म में हर पर्व-त्योहार का विशेष महत्त्व होता है. इसमें देवी-देवाताओं की पूजा की जाती है. ऐसे ही पर्व में से एक है देव दीपावली. इसे देवताओं की दिवाली के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन देवतागण धरती पर विराजते हैं और दिवाली मनाते हैं. देव दिवाली कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है.

शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक पूर्णिमा की शुरुआत 26 नवंबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट से हो रही है और इसका समापन समापन 27 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर होगा. मान्यता है कि देव दिवाली हमेशा प्रदोष काल में मनाई जाती है. यदि हम प्रदोष काल की बात करें तो यह 26 नवंबर को पड़ेगा और इसलिए इसी दिन देव दिवाली मनाई जाएगी. प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त है. 

बन रहे तीन योग
26 नवंबर को तीन शुभ योग बन रहे हैं, जिसमें रवि योग, परिघ योग और शिव योग हैं. रवि योग सुबह से दोपहर तक है. देव दीपावली के मुहूर्त के समय परिघ योग होगा. आज दोपहर से भद्रा भी लग रही है, लेकिन इसका वास स्वर्ग में है, इसलिए इसका कोई दुष्प्रभाव पृथ्वी पर नहीं होगा.

देव दिवाली पूजन सामग्री 
दीयाः देव दिवाली के दिन दीप दान करने का विशेष महत्व है इसलिए इसे मुख्य सामग्री माना जाता है. यह अंधेरे पर प्रकाश की जीत का प्रतीक माना है.
अगरबत्ती या धूपबत्ती: विष्णु पूजन के समय धूप और दीप अर्पित करना प्रमुख माना जाता है. इससे वातावरण पवित्र बना रहता है. 
कपूर: कपूर एक ऐसी सामग्री है जिसका इस्तेमाल घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने के लिए किया जाता है. देव दिवाली के दिन घर में लौंग और कपूर जलाना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.  
रोली और चावल: रोली और चावल का इस्तेमाल देवी-देवताओं के माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता है. 
फूल और मिठाई: देव दिवाली में पूजा के बाद प्रसाद के रूप में फल और मिठाई अर्पित की जाती है. 
गंगाजल: गंगाजल का इस्तेमाल किसी भी स्थान की पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता है. अगर आप देव दिवाली के दिन पूरे घर में गंगाजल छिड़कती हैं तो इससे घर की पवित्रता बढ़ती है.

पूजा विधि
देव दीपावली के अवसर पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या फिर घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर लें. उसके बाद भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें. उनको बेलपत्र, भांग, धतूरा, अक्षत्, फूल, माला, फल, शहद, चंदन आदि अर्पित करें. घी का दीप जलाएं और उनके दाएं रख दें. शिव चालीसा का पाठ करें और देव दीपावली की कथा सुनें, जिसमें उन्होंने असुरराज त्रिपुरासुर का वध किया था.

शाम को सूर्यास्त होने पर किसी नदी या तालाब के किनारे जाएं. वहां पर भगवान शिव का स्मरण करें. फिर मिट्टी के दीपक में घी और रुई की बत्ती से दीप जलाएं. अपने घर के पूजा स्थान पर भी देव ​दीपावली की दीपक जलाएं. इसके अलावा आप घर के पास के किसी शिव मंदिर में भी देव दीपावली की दीप जला सकते हैं.

क्यों मनाते हैं देव दीपावली 
पौराणिक कथा के अनुसार, ​त्रिपुरासुर के आतंक से सभी देवतागण भयभीत थे. तब उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव आगे आए. उनके हाथों से त्रिपुरासुर मारा गया. इसकी खुशी में सभी देवता गण शिव नगरी काशी गए. वहां पर गंगा नदी में स्नान किया और शिव वंदना की. फिर प्रदोष काल में उन्होंने घी के दीप जलाए. उस दिन कार्तिक पूर्णिमा तिथि थी. इस वजह से हर साल कार्तिक पूर्णिमा को प्रदोष व्यापिनी मुहूर्त में देव दीपावली मनाई जाती है.

घर में होगा मां लक्ष्मी का वास
देव दीपावली के दिन घर में तुलसी का पौधा लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है. ऐसे में इस दिन अपने घर तुलसी का पौधा जरूर लाएं. इससे घर में मां लक्ष्मी का वास बना रहता है. साथ ही इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर पर तुलसी के 11 पत्ते जरूर बांधें. इससे व्यक्ति की धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं.

काशी में सदियों से देव दिवाली मनाने की चली आ रही परंपरा 
देव दीपावली का यह पावन पर्व दिवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है. यह पर्व वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से काशी में गंगा नदी के तट पर मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं.

देवों की इस दिवाली पर वाराणसी के घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है. काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन काशी नगरी में एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है. चारों ओर खूब साज-सज्जा की जाती है. इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्ज्वलित करके अर्पित करें.

देव दीपावली पर दीपदान का महत्व
धार्मिक शास्त्रों में देव दीपावली के दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का महत्व बताया गया है. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है. देव दिवाली ही नहीं बल्कि पूरे कार्तिक के महीने में दीप दान करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है. मान्यता है कि कार्तिक के पूरे महीने में सूर्य का आगमन तुला राशि में होता है जिससे वातावरण में अंधकार बढ़ने लगता है.

ऐसे में दीप जलाकर अंधकार को कम किया जाता है. वहीं मान्यता यह भी है कि देव दिवाली के दिन जब सभी देवी-देवता काशी में पधारते हैं तब दीप दान करने से उनका आशीष मिलता है. यदि आप पूरे महीने दीप दान करने में असमर्थ हैं तो देव दिवाली के दिन जरूर घर के मुख्य द्वार पर, मंदिर में और किसी जलाशय के पास दीपक जरूर जलाएं.

 

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