Govardhan Puja Special: जानें क्या महत्व है गोवर्धन पर्वत का, 7 कोस की परिक्रमा करने से पूरी होती हैं मनोकामना

गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई है. इसमें घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन किया जाता है.

Significance of Govardhan Parvat
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 26 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 12:46 PM IST
  • श्रीकृष्ण का एक नाम गिरिराज के रूप में भी प्रसिद्ध है
  • गोवर्धन या गिरि राज वृंदावन से 22 किमी की दूरी पर स्थित है

दिवाली के अगले ही दिन भक्तों को इंतजार रहता है गोवर्धन पूजा का. लेकिन इस बार सूर्यग्रहण की वजह से गोवर्धन पूजा दिवाली के तीसरे दिन मनाई जा रही है. मुख्य रूप से यह त्योहार उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है. 

इस पूजा में गोवर्धन पर्वत, गोधन यानि गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है. इसके साथ ही वरुण देव, इंद्र देव और अग्नि देव देवाताओं की पूजा का भी विधान है.

लेकिन जिस गोवर्धन पर्वत को समर्पित करते हुए यह पूजा की जाती है, क्या आपको उसके बारे में पता है? जी हां, गोवर्धन पूजा, मथूरा के गोवर्धन पर्वत के लिए की जाती है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण की महिमा के कारण देवता के रूप में पूजा जाता है. श्रीकृष्ण का एक नाम गिरिराज के रूप में भी प्रसिद्ध है. 

श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, गोकुल के लोग इंद्र देव (वर्षा के देवता) के सम्मान में उत्सव मनाते थे. वे हर मानसून के अंत में इंद्र देव की पूजा करते थे. इस कारण इंद्र देव को घमंड होने लगा कि उनसे ज्यादा ताकतवर कोई नहीं है. उनके घमंड को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने युवावस्था में लीला रची. 

उन्होंने गोकुल के लोगों को भगवान इंद्र की पूजा करने से रोक दिया. और उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा, जिनकी वजह से गायों को चारा मिलता था, मेघ बारिश लेकर आते. इससे क्रोधित इंद्र देव ने जलप्रलय किया. पूरा गोकुल जलमग्न हो गया. ऐसे में, श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत से मदद मांगी और उन्होंने अपनी छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. इस पर्वत के नीचे मनुष्यों और जानवरों को आश्रय मिला. 

यहीं से कृष्ण का एक नाम गोवर्धनधारी पड़ा. इसके बाद, इंद्र ने भगवान कृष्ण की महानता को स्वीकारा और अपने अहंकार का त्याग किया. 

गोवर्धन परिक्रमा का है महत्व 
गोवर्धन पहाड़ी या गिरि राज वृंदावन से 22 किमी की दूरी पर स्थित है. पवित्र भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान कृष्ण के अनुसार गोवर्धन पर्वत उनसे अलग नहीं है. इसलिए, उनके भक्त गोवर्धन को पूजते हैं. आज भी गोवर्धन की परिक्रमा का बहुत महत्व है. 

कहते हैं कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सबके दुख दूर होते हैं. हालांकि, यह परिक्रमा आसान नहीं है क्योंकि गोवर्धन की परिक्रमा सात कोस यानी की 21 किमी की है. इसे पूरा करने में लोगों को 10 से 12 घंटे लगते हैं और यह परिक्रमा नंगे पैर पैदल चलकर करनी होती है. इसलिए इसका महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि हर कोई यह परिक्रमा नहीं कर सकता है. 

कैसे होती है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन बनाकर उसे फूलों से सजाया जाता है. पूजन के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल चढ़ाये जाते है. इसी दिन गाय-बैल और कृषि काम में आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है. गोवर्धन जी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं. उनकी नाभि के स्थान पर एक मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है.  इस दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं.

पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है. परिक्रमा के वक्त हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी की जाती है. गोवर्धन गिरि भगवान के रूप माने जाते हैं और उनकी पूजा घर में करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है. 

 

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