रामनवमी के पावन अवसर पर शिरडी के साईं दरबार में जहां भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला, वहीं एक खास परंपरा ने सबका ध्यान खींचा- द्वारका माई में नई गेहूं की बोरी रखने की सदियों पुरानी रस्म. इस अनूठी परंपरा को देखने और उसका हिस्सा बनने के लिए दूर-दूर से भक्त साईं दरबार पहुंचे.
यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि श्रद्धा, आभार और अन्न के सम्मान की वह परंपरा है, जो साईं बाबा के समय से आज तक जीवित है. कहा जाता है कि साईं बाबा के समय में जब भक्त अपनी नई फसल लेकर आते थे, तो बाबा उसे आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते थे और उसे जरूरतमंदों के बीच वितरित किया करते थे. इसी परंपरा को निभाते हुए आज भी रामनवमी पर नई गेहूं की बोरी द्वारका माई में रखी जाती है.
अन्न के रूप में भक्ति का समर्पण
हर साल की तरह इस बार भी किसान और श्रद्धालु ताजा गेहूं से भरी बोरियां लेकर शिरडी पहुंचे. इन बोरियों को विशेष विधि से पूजित कर साईं बाबा की कुटिया द्वारका माई में रखा गया. यह प्रक्रिया दर्शाती है कि भक्त केवल मन से ही नहीं, अन्न और मेहनत के रूप में भी बाबा के चरणों में समर्पण करते हैं.
एक बुज़ुर्ग श्रद्धालु बताते हैं, “ये सिर्फ गेहूं नहीं, हमारी मेहनत, आस्था और बाबा के प्रति कृतज्ञता है. साल भर की फसल काटने के बाद सबसे पहली बोरियां बाबा को अर्पित करते हैं, ताकि आने वाला साल भी खुशहाल और भरपूर हो.”
अन्न ही ब्रह्म है: साईं बाबा का मूल संदेश
साईं बाबा का जीवन हमेशा जरूरतमंदों की सेवा, भोजन के महत्व और आत्मसमर्पण के संदेश से जुड़ा रहा. गेहूं की बोरी की यह परंपरा न केवल किसानों के परिश्रम को सम्मान देती है, बल्कि "अन्नं ब्रह्म" (अन्न ही ईश्वर है) की भारतीय सोच को भी प्रकट करती है.
आज जब लोग मंदिरों में महंगे प्रसाद और दिखावे पर जोर देते हैं, तब शिरडी की यह सादी और गहराई से भरी परंपरा एक प्रेरणा है. स्थानीय युवाओं ने भी इस आयोजन में भाग लिया और गेहूं की बोरियां उठाकर बाबा के चरणों तक पहुंचाईं.
सिर्फ श्रद्धा नहीं, समाजसेवा का प्रतीक
बाबा के दरबार में अर्पित गेहूं को बाद में जरूरतमंदों में वितरित किया जाता है या प्रसाद के रूप में उपयोग किया जाता है. इससे यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि समाजिक दृष्टिकोण से भी एक मिसाल बन जाती है.
रामनवमी पर साईं बाबा के प्रति भक्ति और समर्पण की यह मिसाल दिखाती है कि ईश्वर को खुश करने के लिए बड़ा दिखावा नहीं, बल्कि सच्चा समर्पण और दूसरों के प्रति संवेदना ही सबसे बड़ा उपहार है.