Gudi Padwa 2023: क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा, जानिए इस त्योहार की पूजा विधि और कथा

गुड़ी पड़वा के त्योहार को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. इस बार ये तिथि 22 मार्च 2023 को पड़ रही है. आइये जानते हैं कि गुड़ी पड़वा का त्योहार किस तरीके से मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है.

Gudi Padwa
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST
  • ऐसी मान्यता इसी दिन संसार में सूर्य देव पहली बार उदय हुए थे
  • इसी दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपैठियों को पराजित किया था

हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से नववर्ष शुरू होता है. इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहा जाता है. महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मराठी समुदाय के लोग अपने घर के बाहर गुड़ी बांधकर पूजा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन इस तरह से पूजा करने से नया साल सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य लेकर आएगा. 

गुड़ी पड़वा 2023 डेट और मुहूर्त
इस साल गुड़ी पाड़वा का त्योहार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की  प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह तिथि रात 10 बजकर 52 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 22 मार्च 2023 को रात 8 बजकर 20 मिनट पर खत्म होगी. जिसके चलते इस साल 22 मार्च को इस त्यौहार को मनाया जाएगा. गुड़ी पड़वा के पूजा का शुभ मुहूर्त 22 मार्च 2023 सुबह 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 07 बजकर 39 मिनट तक रहेगी. 

गुड़ी पड़वा का महत्व
शास्त्रों के मुताबिक गुड़ी पड़वा को संसार का पहला दिन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी. इसी दिन संसार में सूर्य देव पहली बार उदय हुए थे. वहीं पौराणिक कथा है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने बाली का वध करके लोगों को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया था. जिसके चलते इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. यही वजह है कि इस दिन लोग अपने घर के बाहर विजय पताका फहराकर जश्न मनाते हैं. वहीं इसी दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपैठियों को पराजित किया था. इस जीत का जश्न शिवाजी महाराज और उनके साथियों ने गुड़ी फहराकर मनाया था.

ऐसे मनाई जाती है गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा के दिन की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके प्रार्थना करने के साथ होती है. इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं. साथ ही वह घर के अंदर और बाहर फूलों की माला, मिट्टी के दीयों और रंगोली से सजाया जाता है. पूजा करने से पहले वह नए कपड़े पहनते हैं. रेशमी दुपट्टे का इस्तेमाल करके गुड़ी के झंडे बनाए जाते हैं. साथ ही बांस की छड़ी पर उलटे तरीके से कलश रखने की परंपरा है, जिसे विजय का प्रतीक माना जाता है. 

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