गुजरात के आध्या शक्तिपीठ में हुई चैत्र नवरात्र पर्व की शुरुआत...दिन में तीन रूप बदलती हैं माता

देश के 51 शक्तिपीठ में अंबाजी आद्यशक्तिपीठ कहा जाता है. अंबाजी मंदिर गुजरात राजस्थान सीमा पर अरावली पहाड़ों पर बसा है. अंबाजी मंदिर मातारानी का सबसे बड़ा और प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर पर 358 सोने के छोटे मोटे कलश लगे हुए हैं. इस लिए यह मंदिर गोल्डन शक्तिपीठ के नामसे भी जाना जाता है.

Chaitra Navratri
गोपी घांघर
  • अहमदाबाद,
  • 01 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 4:51 PM IST
  • मातारानी की जगह यंत्र की होती है पूजा
  • 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं नवरात्र

देश के 51 शक्तिपीठ में अंबाजी आद्यशक्तिपीठ कहा जाता है.अंबाजी मंदिर गुजरात राजस्थान सीमा पर अरावली पहाड़ों पर बसा है. अंबाजी मंदिर मातारानी का सबसे बड़ा और प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर पर 358 सोने के छोटे मोटे कलश लगे हुए हैं. इस लिए यह मंदिर गोल्डन शक्तिपीठ के नामसे भी जाना जाता है. चैत्र नवरात्र पर्व में अंबाजी मंदिर में देशभर में से भक्त मातारानी के दर्शन करने आते है और दर्शन करके धन्य हो जाते हैं. अंबाजी में आसो नवरात्र ओर चैत्र नवरात्र का विशेष महत्त्व होता है. अंबाजी मंदिर दो साल कोरोना गाइडलाइन के हिसाब से चैत्र नवरात्र पर्व में बंद रहा था. अब 2022 चैत्र नवरात्र पर्व में अंबाजी मंदिर भक्तों के लिए खोला गया है.  9 दिन तक अंबाजी मंदिर में मातारानी की अलग-अलग सवारी होती है. 

मातारानी की जगह यंत्र की होती है पूजा
चैत्र नवरात्र पर्व में अंबाजी मंदिर की ओर से भक्तों के लिए व्यवस्था की गई है. कोविड गाइडलाइन नार्मल होने से भक्त आसानी से मातारानी के दर्शन कर पाएंगे. चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं.अंबाजी मंदिर में पहले दिन मातारानी का घट स्थापन से नवरात्र पर्व शुरू हो जाता है. दूसरे नवरात्र से अष्टमी तक रोज सुबह 2 मंगला आरती की जाती है ,जिसमें एक आरती गर्भगृह में और दूसरी आरती घट स्थापन वाली जगह पर होती है. अंबाजी मंदिर में रोज सुबह और शाम 7 बजे आरती होती है. अष्टमी और पूर्णिमा के दिन सुबह 6 बजे मंगला आरती होती है. अंबाजी मंदिर में मातारानी की मूर्ति की नहीं बल्कि यंत्र की पूजा की जाती है. मंदिर में सुबह बाल भोग दोपहर को राजभोग और शाम को सायं भोग चढ़ाया जाता है. अंबाजी मंदिर में सुबह मातारानी का बाल रूप होता है. दोपहर में यौवन रूप होता है और शाम को वृद्ध रूप होता है. रोज सुबह और शाम मातारानी का अलग-अलग शृंगार किया जाता है.


 

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