पूरे देश में हनुमान जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है. हनुमान जयंती या हनुमान जन्मोत्सव हर साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. बजरंग बली हर संकट को हर लेते हैं. सभी परेशानियों से निजात दिला देते हैं. यही वजह है कि बजरंगबली को संकट मोचन भी कहा जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी आज भी धरती पर रहते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. हिन्दू धर्म में हनुमान जी की पूजा का खास महत्व है. हर मंगलवार और शनिवार को भक्त विशेष रूप से बजरंगबली की पूजा करते हैं. हनुमान जयंती के दिन भक्त बजरंग बली के प्रति अपनी भक्ति दिखाते हैं.
पूरे देश में हनुमान जयंती मनाई जा रही है. दिलचस्प बात ये है कि हनुमान जयंती साल में एक बार नहीं दो बार मनाई जाती है. साल में दो बार हनुमान जयंती क्यों मनाई जाती है? दोनों जयंती के बीच आखिर क्या अंतर है? आइए इस बारे में जानते हैं.
हनुमान जयंती
हनुमान जयंती इस बार 12 अप्रैल को मनाई जा रही है. पंचांग के अनुसार, इस बार हनुमान जयंती 12 अप्रैल को सुबह 3.20 बजे शुरू होगी. 13 अप्रैल सुबह 5.52 बजे तक चलेगी. पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन बजरंगबली का जन्म हुआ था. हनुमान जी राज केसरी और माता अंजनी के घर पैदा हुए थे. इस बार हनुमान जयंती शनिवार के दिन है. कहा जाता है कि शनिवार को बजरंग बली की पूजा करने से कुंडली से शनि दोष दूर हो जाता है.
साल में दो बार क्यों?
हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है. एक हनुमान जयंती चैत्र माह में मनाई जाती है. वहीं दूसरी हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है. चैत्र माह में मनाई जाने वाली हनुमान जयंती विशेष रूप से नॉर्थ इंडिया में मनाई जाती है. ये हनुमान जयंती बजरंगबली के जन्म को सेलिब्रेट करने के लिए मनाई जाती है. इसी दिन पवन पुत्र हनुमान केसरी और अंजनी के घर पैदा हुए थे.
दूसरी हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है. ये हनुमान जयंती विशेष रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों में मनाई जाती है. भक्त 41 दिन तक दीक्षा का पालन करते हैं. हनुमान जयंती पर इसका समापन होता है. माना जाता है कि इसी दिन हनुमान जी को अमरता प्राप्त हुई थी. दोनों ही हनुमान जयंती को धूमधाम से देश में मनाया जाता है.
भारत में साल में दो बार हनुमान जयंती मनाई जाती है. दोनों जयंती की तारीख अलग-अलग है लेकिन मनाने का तरीका एक जैसा ही है. दोनों हनुमान जयंती पर लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, मंदिरों में जाते हैं और सेवा भी करते हैं.