History of Makar Sankranti: महाभारत काल से जुड़ी है मकर संक्रांति पर्व की कहानी, जब भीष्म पीतामह ने रोककर रखे प्राण

इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन जब वे बाण से घायल हुए, तब सूर्य दक्षिणायन में थे. उन्होंने उस समय अपने प्राण नहीं त्यागे और सूर्य के उत्तरायण में आने का इंतजार किया.

भीष्म पीतामह
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:18 AM IST

हिंदू धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई प्रमुख त्‍योहारों को मनाने की परंपरा है. उन्‍हीं में से एक है मकर संक्राति. शास्‍त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान का विशेष महत्‍व बताया गया है. पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है. मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है.मकर संक्रांति यानि खिचड़ी का पर्व प्रकृति में और जीवनशैली में एक नए बदलाव का संकेत  है. वैसे तो ये त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन, इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. दरअसल, मकर संक्रांति की तिथि का आरंभ 14 जनवरी को रात में 8 बजकर 42 मिनट से हो रहा है.ऐसे में उदय तिथि में यानी 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी.

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश यानि मकर संक्रांति दान,पुण्य की पावन तिथि. मकर संक्रांति यानि देवताओं का दिन. इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है. मकर संक्रान्ति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है. इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है.
 
क्या है इतिहास?
महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का हीचयन किया था. एक दिन युद्ध खत्म होने के बाद सभी पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे.जब पांडव भीष्म के पास पहुंचे तो भीष्म उन्हें धर्म-अधर्म और राजनीति कि बातें बता रहे थे. उस समय द्रौपदी ने भीष्म से पूछा कि आज आप ज्ञान, धर्म की इतनी बातें कर रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा चीरहरण हो रहा था, तब आप चुप क्यों थे? आप को धर्म जानते हैं, फिर मेरी मदद क्यों नहीं की? भीष्म पितामह ने द्रौपदी से कहा कि मैं जानता था, एक दिन मुझे इस सवाल का जवाब जरूर देना होगा, जिस दिन तुम्हारा चीरहरण अधर्म हो रहा था, उस समय मैं दुर्योधन का दिया अन्न खा रहा था, मैं गलत लोगों की संगत में फंसा था, दुर्योधन का दिया अन्न पाप कर्मों से कमाया हुआ था. ऐसा दूषित अन्न और गलत संगत की वजह से मैं दुर्योधन के अधीन हो गया था. इस वजह से ही मैं उस दिन तुम्हारी मदद नहीं कर सका.

जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था. मकर संक्रांतिके दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं. मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य की आराधना हर किसी को मोक्ष दिला सकती है. 

मकर संक्रांति को क्या करें ?
- प्रातः काल स्नान करके, सूर्य देव को अर्घ्य दें 
- इसके बाद सूर्यदेव और शनिदेव के मन्त्रों का जप करें 
- सम्भव हो तो गीता का पाठ भी करें  
- पुण्यकाल में नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें
- इस बार तिल और गुड़ का दान करना भी विशेष शुभ होगा 
- साथ में इस बार एक पीपल का पौधा भी लगवा देना चाहिये 
- भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनायें 
- भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें 

किन चीजों का करें दान?
मकर संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं. ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है. वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है.

 

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