रंगों का त्योहार होली से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है. होलाष्टक होली और अष्टक शब्द से मिलकर बना है. होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है. इसका समापन होलिका दहन के दिन होता है. इस साल होलाष्टक 17 मार्च से शुरू हो रहा है. माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में आध्यात्मिक कार्यों में जीवन बीताना चाहिए.
24 मार्च को होलिका दहन
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी की तिथि की शुरुआत 16 मार्च 2024 रात 9:39 बजे से हो रही है, जबकि यह तिथि रविवार 17 मार्च 9:53 बजे संपन्न हो रही है. इसलिए उदयातिथि में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 17 मार्च को होगी और इसी दिन से होलाष्टक की शुरुआत मानी जाएगी. 24 मार्च को होलिका दहन होगा. होलिका दहन के दिन सुबह 09 बजकर 54 मिनट पर भद्रा लग जाएगी और रात 11:13 बजे तक रहेगी. भद्रा होने के कारण इस साल प्रदोष काल में होलिका दहन नहीं हो पाएगी. ऐसे में भद्रा के खत्म होने का इंतजार करना होगा. 24 मार्च को होलिका दहन का समय रात 11:13 बजे से 12:27 बजे तक है. फिर अगले दिन 25 मार्च को होली (Holi) का पर्व मनाया जाएगा.
मांगलिक कार्य नहीं होते हैं सफल
हिंदू धर्म के अनुसार होलष्टक के समय कोई भी शुभ कार्य या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि जो लोग इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करते हैं उनको जीवन में आए दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है या इस दौरान किए गए मांगलिक कार्य सफल नहीं होते हैं. होलष्टक के दौरान विवाह जैसा मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इस समय निर्मित किए गए मकान सुख नहीं देते, इसलिए गृह निर्माण भी वर्जित होता है. इस समय नया व्यवसाय करना भी लाभकारी नहीं होता है. जिन कार्यों को लंबे समय तक चलाना है, उनको भी इस समय रोक देना चाहिए.सोना-चांदी, वाहन आदि की खरीदारी करने की मनाही होती है. होलाष्टक में जप और तप करना शुभ माना जाता है.
होलाष्टक में इन 16 संस्कारों को करने पर रहती है मनाही
1. चूड़ाकर्म: मुंडन.
2. गर्भाधान: किसी स्त्री का गर्भ धारण करना.
3. पुंसवन: गर्भ धारण करने के तीन महीने के बाद किया जाने वाला संस्कार.
4. सीमंतोन्नयन: गर्भ के चौथे, छठे व आठवें महीने में होने वाला संस्कार.
5. जातकर्म: बच्चे के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए शहद और घी चटाना और वैदिक मंत्रों का उच्चारण करना.
6. नामकरण: बच्चे का नाम रखना.
7. निष्क्रमण: यह संस्कार बच्चे के जन्म के चौथे महीने में किया जाता है.
8. अन्नप्राशन: बच्चे के दांत निकलने के समय किया जाने वाला संस्कार.
9. विद्यारंभ: शिक्षा की शुरुआत.
10. कर्णवेध: कान को छेदना.
11. यज्ञोपवीत: गुरु के पास ले जाना या जनेऊ संस्कार.
12. वेदारंभ: वेदों का ज्ञान देना.
13. केशांत: विद्यारम्भ से पहले बाल मुंडन.
14. समावर्तन: शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति का समाज में लौटना समावर्तन है.
15. विवाह: शादी के बंधन में बंधना.
16. अन्त्येष्टि: अग्नि परिग्रह संस्कार.
होलिका दहन के लिए स्थान का किया जाता है चयन
होलाष्टक बिहार, यूपी, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में उत्साह से मनाया जाता है. होलाष्टक की परंपरा के अनुसार इस दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान का चयन किया जाता है.
होलिका दहन पूजा में क्या करें
1. घी का दीया जलाकर और उसे अपने घर के उत्तरी कोने में रखकर आप अपने घर में सकारात्मकता और शांति को आकर्षित कर सकते हैं.
2. गाय के गोबर के कंडे, सरसों के बीज, तेल, तिल के बीज, चीनी, गेहूं के दाने, अक्षत और सूखे नारियल को पवित्र अग्नि में अर्पित करें. ऐसा माना जाता है कि इस प्रथा से घर में सौभाग्य और समृद्धि आती है.
3. अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते समय अग्नि को जल अर्पित करें. यह अभ्यास शुद्धि का प्रतीक है और माना जाता है कि यह देवता से आशीर्वाद लाता है.
4. होलिका दहन के दिन पूरे शरीर पर हल्दी और तिल के तेल का मिश्रण लगाएं. कुछ देर बाद हल्दी को रगड़ कर उतार लें और इसे एक कागज के टुकड़े पर रख लें. इसके बाद खुरपी हुई हल्दी को होलिका की अग्नि में अर्पित करें. ऐसा माना जाता है कि यह अभ्यास अच्छा स्वास्थ्य लाता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है.
5. होलिका दहन की राख को इकट्ठा करके शरीर पर लगाने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है क्योंकि इसे पवित्र माना जाता है.
क्या नहीं करें
1. होलिका दहन के दिन घर के बाहर किसी के द्वारा दिए गए भोजन या पानी के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है.
2. ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन पर दूसरों को कीमती चीजें या पैसा उधार नहीं देना चाहिए.
3. बालों को रूखा और खुला रखने से बचना चाहिए.
4. होलिका दहन की रस्म करते समय पीले/काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए.
5. होलिका दहन की रात को सलाह दी जाती है कि सड़क पर पड़ी किसी भी बेतरतीब वस्तु को न छुएं क्योंकि वे टोटका वाली हो सकती हैं.
मांगलिक कार्य होलाष्टक में क्यों रहते हैं बंद
हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था जबकि उसके पुत्र प्रहलाद भगवान के परम भक्त थे. इसके कारण हिरण्यकशिपु अपने पुत्र को मारना चाहता था. उसने इसके लिए कई उपाय किए लेकिन वह सफल नहीं हुआ. इसके बाद हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपने भाई से कहा कि वरदान के मुताबिक मैं अग्नि से जल नहीं सकती हूं. मैं प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाती हूं. इससे प्रहलाद मर जाएगा. भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर वह अग्नि में आठ दिन के लिए बैठी थी.
होलिका को वरदान होने के कारण वह सात दिन तक नहीं जली परंतु आठवें दिन वह अग्नि सहन नहीं कर पाईं और जलकर उसमें भस्म हो गईं. भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु के आशीर्वाद से कुछ भी नहीं हुआ. होलिका के जलने के बाद अग्नि देव शांत हो गए और भक्त प्रहलद सुरक्षित निकल आए. इन आठ दिनों में भक्त प्रहलाद ने अग्नि का ताप और पीड़ा सही जिस कारण यह आठ दिन होलाष्टक कहा जाने लगा, इसलिए इन आठ दिनों कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है.होलाष्टक के विषय में कई धार्मिक मान्यताएं हैं. कहते हैं कि होलाष्टक में ही शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था. इस अवधि में हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं. इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. लेकिन जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले कार्य कर सकते हैं.