Holi 2023: आखिर होली से पहले क्यों किया जाता है होलिका दहन? कब है शुभ मुहूर्त...क्या है पूजा विधि, यहां जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में होली के त्योहार का विशेष महत्व है. होली के एक दिन पहले होलिका दहन करने की पंरपार है. इसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. आइए जानते हैं होलिका दहन को लेकर क्या है पौराणिक कथा. 

होलिका दहन (फाइल फोटो)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 7:43 PM IST
  • होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले हो जाती है शुरू 
  • होलिका दहन के बाद इस अग्नि की राख को लोग शरीर पर लगाते हैं

पूरे भारत में होली का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते हैं. होली दो दिनों तक मनाई जाती है. पहले दिन होलिका दहन होता है जिसे छोटी होली भी कहा जाता है और दूसरे दिन रंगों का त्योहार होता है. 

होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है. लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है. दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं.

शुभ मुहूर्त और तिथि
07 मार्च 2023 को होलिका दहन का मुहूर्त शाम को 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक है. इस दिन होलिका दहन का कुल समय 02 घंटे 27 मिनट तक है. इस समय में होलिका पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी. होलिका दहन के दिन 07 मार्च को भद्रा सुबह 05 बजकर 15 मिनट तक है. ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा.

होलिका दहन में डालें ये चीजें
फूल, माला, नारियल, रोली, गुलाल, गुड़, कच्चा सूत, हल्दी, गेहूं की बालियां उबटन आदि.

होलिका दहन की विधि
1. होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, लकड़ी, सूखी घास आदि डालें.
2. इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें.
3. पूजा में एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बतासे, गुलाल व नारियल के साथ-साथ नई फसल के धान्य जैसे पके चने की बालियां और गेहूं की बालियां, गोबर से बनी ढाल लें.
4. कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटकर लोटे का शुद्ध जल व अन्य सामग्री को समर्पित करें.
5. पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें. इस प्रकार होलिका पूजन से घर में दुःख-दारिद्रय का प्रवेश नहीं होता है.
6. होलिका दहन करने से पूर्व घर के उत्तर दिशा में शुद्ध घी के सात दिए जलाएं. ऐसा करने से घर में धन, वैभव आता है और बाधाएं दूर होती हैं.

होलिका दहन की पौराणिक कथा
1. सबसे लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और दानव होलिका के बारे में है. प्रह्लाद राक्षस हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु का पुत्र था. हिरण्यकश्यप नहीं चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करे. एक दिन, उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे को मारने की योजना बनाई. होलिका के पास एक दिव्य शॉल थी. होलिका को यह शॉल ब्रह्मा जी ने अग्नि से बचाने के लिए उपहार में दिया था. होलिका ने प्रह्लाद को लालच दिया कि वो प्रचंड अलाव में उसके साथ बैठे लेकिन भगवान विष्णु की कृपा के कारण, दिव्य शाल ने होलिका के बजाय प्रह्लाद की रक्षा की. होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद अग्नि से बाहर निकल आया. इसलिए इस त्यौहार को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है.

2. होली को लेकर एक दूसरी कथा भगवान शिव और पार्वती की है. हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे. कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आते हैं और प्रेम बाण चलाते हैं जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है. शिवजी क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं. इससे कामदेव का शरीर भस्म हो जाता है. इन सबके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं. पार्वती की आराधना सफल हो जाती है और शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय के उत्सव में मनाया जाता है.

3. तीसरी पौराणिक कथा है भगवान श्रीकृष्ण की जिसमें राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास आती है और उन्हें अपना जहरीला दूध पिला कर मारने की कोशिश करती है. भगवान कृष्ण ने पूतना के प्राण ले लिए. कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला. होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है. 

 

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