Holika Dahan क्या है, होली से पहले क्यों की जाती है होलिका की पूजा, जानिए पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त

Holika Dahan 2024 Muhurat: होलिका दहन की तैयारी फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के आने से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है. लोग पेड़ों की सूखी टहनियों, पत्ते जुटाने लगते हैं. इसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को इन्हें अग्नि दी जाती है. इस बार होलिका दहन 24 मार्च 2024 को किया जाएगा. 

Holika Dahan (File Photo PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST
  • 24 मार्च 2024 को किया जाएगा होलिका दहन 
  • 25 मार्च को खेली जाएगी रंगों वाली होली 

हर साल होली से पहले फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है. होलिका दहन करते समय भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है. भद्रा के बाद ही होलिका दहन का विधान होता है. होलिका दहन करने से पहले होलिका की पूजा-अर्चना की जाती है. आइए आज जानते हैं होलिका राक्षसी थी तो फिर उसकी पूजा क्यों की जाती है. इस बार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?

इतने दिन पहले से शुरू हो जाती है होलिका दहन की तैयारी
होलिका दहन की तैयारी फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के आने से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है. लोग पेड़ों की सूखी टहनियों, पत्ते जुटाने लगते हैं. इसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को इन्हें अग्नि दी जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है. इस बार होलिका दहन 24 मार्च 2024 को  सोमवार को किया जाएगा.

24 मार्च को भद्रा सुबह में 9 बजकर 24 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 27 मिनट तक रहेगी. भद्रा के कारण उस दिन रात में 10 बजकर 27 मिनट के बाद ही होलिका दहन किया जा सकता है. इसके बाद दूसरे दिन यानी होली की सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर पर लगाया जाता है. फिर स्नान किया जाता है. 

क्यों की जाती है होलिका की पूजा
होलिका दहन का पर्व हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. होलिका दहन आज से नहीं बल्कि पौराणिक काल से चला आ रहा है. पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन होलिका एक देवी थी, जो ऋषि के श्राप के कारण राक्षसी बन गई थी. अपने भतीजे प्रहलाद के साथ आग में बैठने के बाद उसकी मृत्यु हो गई और आग में जलने के कारण वह शुद्ध भी हो गई. यही कारण है कि होलिका के राक्षसी होने के बावजूद होलिका दहन के दिन एक देवी के रूप में पूजा-अर्चना की जाती है. 

इसके साथ ही भी मान्यता है कि होलिका दहन वाले आग में एक मुट्ठी चावल डालने से होलिका देवी की कृपा बनी रहती है और कोई भी आपको हानि नहीं पहुंच पाता पाता है. अग्नि के चक्कर लगाने से कष्ट मिट जाते हैं. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के अन्य रूपों में से एक रूप अग्निदेव का है. होलिका दहन में जो भी सामग्री डाली जाती है वो अग्निदेव ही देवताओं को पहुंचाते हैं. इसका जिक्र वेद-पुराणों में किया गया है. अग्नि की पूजा-अर्चना करने से भक्त की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं.

होलिका जलकर हो गई राख
पौराणिक कथा कथा के अनुसार ऋषि कश्यप के दो पुत्र हरिण्याक्ष और हरिण्यकश्यप थे. धरती को हरिण्याक्ष से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर उसका वध कर दिया था. भाई के वध के बाद से ही हिरण्यकश्यप विष्णु जी से घृणा करने लगा था. लेकिन राक्षस हिरण्यकश्यप और कयाधु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. यही वजह है कि हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मारना चाहता था. हिरण्यकश्यप नहीं चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करे.

एक दिन, उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे को मारने की योजना बनाई. होलिका के पास एक दिव्य शॉल थी. होलिका को यह शॉल ब्रह्मा जी ने अग्नि से बचाने के लिए उपहार में दिया था. होलिका ने प्रह्लाद को लालच दिया कि वो प्रचंड अलाव में उसके साथ बैठे लेकिन भगवान विष्णु की कृपा के कारण, दिव्य शाल ने होलिका के बजाय प्रह्लाद की रक्षा की. होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद अग्नि से बाहर निकल आया. इसलिए इस त्योहार को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है.

भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी है दूसरी कथा
होली को लेकर एक-दूसरी कथा भगवान शिव और पार्वती की है. हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे. कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए. उन्होंने प्रेम बाण चलाया. इससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई. इससे भोलेबाबा क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल दी.

इससे कामदेव का शरीर भस्म हो गया. इसके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं. पार्वती की आराधना सफल हो जाती है और शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय के उत्सव में मनाया जाता है.

पूतना का जलाया था पुतला 
तीसरी पौराणिक कथा है कंस के कहने पर भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर आई थी. उसने भगवान श्रीकृष्ण को अपना जहरीला दूध पिला कर मारने की कोशिश की थी. भगवान कृष्ण ने पूतना के प्राण ले लिए थे. कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया था इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बनाकर जला डाला था. इसके अलावा होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. 
 

 

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