Bhai Dooj Poojan 2024: भाई दूज पर कैसे करनी होती है चित्रगुप्त महाराज की पूजा? आज के दिन का क्या महत्व है?

इस दिन चित्रगुप्त महाराज का बड़ा महत्व होता है. इनका जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ था. इनका कार्य प्राणियों के कर्मों के हिसाब किताब रखना है. मुख्य रूप से इनकी पूजा भाई दूज के दिन होती है. इनकी पूजा से लेखनी, वाणी और विद्या का वरदान मिलता है.

Bhai Dooj 2024
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 9:57 AM IST

भारत में भाई दूज का अपना अलग महत्व है. दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को ये पर्व मनाया जाता है. इस तिथि से संबंध यमराज और द्वितीया तिथि से भी है इसलिए इसे यमद्वितिया भी कहा जाता है. इस खास दिन पर बहनें अपने भाई का तिलक करती हैं, उनका स्वागत सत्कार करती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. भाई इस दिन बहन के घर पर जाकर भोजन ग्रहण करता है और तिलक करवाता है, ऐसा करने से उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती.

भाई दूज की पूजा कैसे करें? 
आज के दिन भाई को प्रातःकाल चंद्रमा का दर्शन करना चाहिए. इसके बाद यमुना के जल से स्नान करना चाहिए या ताजे जल से स्नान कर सकते हैं. अपनी बहन के घर जाएं और वहां बहन के हाथों से बना हुआ भोजन ग्रहण करें.  बहनें भाई को भोजन करवाती हैं और उन्हें तिलक करती हैं. भाई यथाशक्ति अपनी बहन को उपहार दें. 

कौन हैं चित्रगुप्त महाराज और इनकी पूजा कैसे करें ? 
इस दिन चित्रगुप्त महाराज का बड़ा महत्व होता है. इनका जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ था. इनका कार्य प्राणियों के कर्मों के हिसाब किताब रखना है. मुख्य रूप से इनकी पूजा भाई दूज के दिन होती है. इनकी पूजा से लेखनी, वाणी और विद्या का वरदान मिलता है. इनकी पूजा के लिए प्रातः काल पूर्व दिशा में चौक बनाएं. 

इस पर चित्रगुप्त भगवान के विग्रह की स्थापना करें, उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं, फूल और मिठाई अर्पित करें, उन्हें एक कलम भी अर्पित करें. एक सफेद कागज पर हल्दी लगाकर उस पर "श्री गणेशाय नमः" लिखें - फिर "ॐ चित्रगुप्ताय नमः" 11 बार लिखें. 

सूर्य देव की भी पूजा की परंपरा है  
कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है. शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से हुई है, जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है. अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के उपासक थे अतः परम्परा के रूप में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव इस इलाके पर दिखता है. कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशी में होता है अतः सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है, ताकि स्वास्थ्य की समस्या परेशान न करें. षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है अतः सूर्यदेव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है 

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