Jain Muni Acharya Vidyasagar Maharaj: 22 साल में संन्यास, 26 साल में आचार्य! जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज की कहानी जानिए

Vidyasagar Maharaj: जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के राजनांदगांव (Rajnandgaon) में चंद्रगिरी तीर्थ (Chandragiri Tirth) में ब्रह्मलीन हुए. उन्होंने 3 दिन पहले उपवास और मौन धारण कर लिया था. विद्यासागर महाराज सिर्फ 26 साल की उम्र में साल 1972 में आचार्य बन गए थे. जैन मुनि विद्यासागर आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे.

Jain Muni Acharya Vidyasagar Maharaj (File/X)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 5:05 PM IST

जैन धर्म के प्रमुख गुरु जैन मुनि विद्यासागर महाराज (Vidyasagar Maharaj) ने शनिवार की रात करीब ढाई बजे पर अपना देह त्याग दिया. उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरी तीर्थ में सल्लेखना करके देह त्यागा. सल्लेखना जैन धर्म की एक परंपरा है, जिसमें देह त्यागने के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग किया जाता है. विद्यासागर महाराज ने 3 दिन पहले उपवास और मौन धारण कर लिया था. आपको बता दें कि 6 फरवरी को उन्होंने आचार्य पद का त्याग कर दिया था.

26 साल में बन गए थे आचार्य-
आचार्य विद्यासागर महाराज जैन समाज के सबसे फेमस संत थे. वो आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे. जब आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि ली थी, तो उस समय उन्होंने आचार्य विद्यासागर को सौंप दिया था. जब 22 नवंबर 1972 को विद्यासागर महाराज आचार्य बने थे, उस समय उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी.

कौन थे विद्यासागर महाराज-
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगांव के चिक्कोड़ी गांव में हुआ था. उनके पिता मल्लप्पा थे, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने. उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो बाद में आर्यिका समयमति बनी. विद्यासागर महाराज के परिवार के कई लोग जैन संत बने.

जैन मुनि विद्यासागर महाराज ने संस्कृत, प्राकृत हिंदी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने युवावस्था में घर छोड़ दिया. 22 साल की उम्र में उन्होंने राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर महाराज से दीक्षा ली. इसके 4 साल बाद उनको आचार्य का पद प्राप्त हुआ. विद्यासागर महाराज ने अपनी जीवन में 500 से अधिक लोगों को दीक्षा दी. उनके माता-पिता ने भी उन्हीं से दीक्षा ली थी. विद्यासागर महाराज ने खुद कई आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे हैं.

'ब्रह्मांड के देवता' के रूप में सम्मान-
विद्यासागर महाराज ने हिंदी को बढ़ावा देने के साथ किसी राज्य में न्याय प्रणाली को उसकी आधिकारिक भाषा में बनाने के अभियान की अगुवाई की थी. 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में 'ब्रह्मांड के देवता' के तौर पर सम्मानित किया गया था.

विद्यासागर महाराज ने हिंदी और संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे हैं. 100 से अधिक शोधार्शियों ने उनके काम पर पीएचडी किया है. वो कभी भी किसी भी यात्रा पर निकल पड़ते थे, इसके लिए उन्होंने कभी योजना नहीं बनाई. अक्सर वे नदी, झील, पहाड़ जैसे प्राकृतिक जगहों पर ठहरते थे.

पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि-
नई दिल्ली में चल रही बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज की याद में एक मिनट का मौन रखा गया. पीएम नरेंद्र मोदी ने जैन मुनि को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा - "यह मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति की तरह है. मैं उनसे कई बार मिला. कुछ महीने पहले मैंने अपने दौरे का कार्यक्रम बदला और सुबह-सुबह उनसे मिलने पहुंच गया. तब नहीं पता था कि दोबारा उन्हें नहीं देख पाऊंगा. मैं संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 पूज्य विद्यासागर महाराज को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए श्रद्धांजलि देता हूं." पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी डोंगरगढ़ पहुंचे थे और विद्यासागर महाराज ने आशीर्वाद लिया था.

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