दो साल बाद चालीस तीर्थयात्रियों का दल उत्तराखंड में सड़क मार्ग से वाहनों के जरिए पहली बार आदि कैलाश और ओम पर्वत की यात्रा पूरी कर दिल्ली लौट आया है. पर्यटन मंत्रालय भी इस उपलब्धि से गदगद है. ऐसा पहली बार है जब ये यात्री वाहनों से आदि कैलाश के दर्शन पॉइंट तक पहुंचे हैं. तीन साल पहले तक यात्री पिथौरागढ़ और धारचूला जिले में आदि कैलाश आधार शिविर यानी कैलाश व्यू प्वाइंट से करीब सौ किलोमीटर पीछे ही वाहन छोड़ते थे. फिर घोड़ों से या पैदल आदि कैलाश और ओम पर्वत तक की दर्शनी यात्रा करते थे.
पर्वतीय इलाका है बेहद दुर्गम
इन दो सालों में सीमा सड़क यानी बीआरओ ने भारत चीन सीमा से सटे गुंजी जौली दकांग मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक कर लिया है. अब कुमाऊं मंडल विकास निगम यात्रियों को सीधे आदि कैलाश और बर्फ से ओम की आकृति वाले ओम पर्वत के दर्शनों के लिए ले जा रहा है. बता दें, यह पर्वतीय इलाका बेहद दुर्गम है.
पहले पैदल यात्रा में लगते थे 6 से 8 दिन
पहले इस जोखिम भरे पैदल यात्रा के लिए बने पहाड़ी पगडंडी वाले रास्ते पर पैदल चलकर यात्री 6 से 8 दिन में यह यात्रा पूरी करते थे. लेकिन अब 17000 फुट की ऊंचाई पर लिपुलेख दर्रा को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण पूरा हो गया है.
हालांकि, कोविड लॉकडाउन और फिर एहतियात के चलते दो साल यात्रा बंद रही. बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने इसका फायदा उठाया और सड़क पूरी बना डाली. यानी दो साल के गैप के बाद अब सिर्फ वाहनों से आदि कैलाश और ओम पर्वत की यात्रा पूर्ण हो जाती है.
इस साल आदि कैलाश यात्रा के लिए सीजन में 18 दलों में आठ सौ से ज्यादा यात्रियों को वहां ले जाने की योजना है. कुमाऊं मंडल विकास निगम के अधिकारियों के मुताबिक यात्रा का आधार शिविर धारचूला है. यहां से यात्री पहले दिन सीधे गुंजी पहुंचते हैं. शरीर को वातावरण के अनुसार थोड़ा ढालते हुए इसके अगले दिन वह वाहन से ओम पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन और यात्रा शुरू करते हैं.
कोविड से पहले यात्रा करने में आती थी दिक्कत
गौरतलब है कि कोविड काल शुरू होने से पहले तक यानी 2019 तक आदि कैलाश की यात्रा करना कठिन यात्रा माना जाता था यात्रियों को 98 किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल पार करनी पड़ती थी इस लगभग 100 किलोमीटर के यात्रा में 6 पड़ाव होते थ ओम पर्वत की यात्रा करने वालों को आठ पढ़ाओ में पर विश्राम की सुविधा थी.