संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है. इसबार कई अहम मुद्दों पर चर्चा होने वाली है. वक्फ बोर्ड भी इनमें से एक होने वाला है. शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसपर बात करते हुए कहा कि संविधान में वक्फ कानून के लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार वक्फ संशोधन विधेयक पेश करेगी. हालांकि, भारत में वक्फ का इतिहास काफी पुराना है. चलिए जानते हैं कि आखिर भारत में वक्फ कैसे आया? इसका क्या मतलब है?
दरअसल, वक्फ को इस्लाम में काफी महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. हालांकि, कुरान में सीधे तौर पर "वक्फ" शब्द का कोई जिक्र नहीं है. लेकिन कई छंदों में अल्लाह मुसलमानों को अपने अच्छे काम और उपहारों के साथ दूसरे लोगों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इन आयतों में से एक सूरह अली इमरान की 92वीं आयत है, जिसमें कहा गया है, "जब तक आप अपने सबसे प्रिय चीज का एक हिस्सा साझा नहीं करते, तब तक वह दान नहीं कहलाता है.”
वक्फ अरबी शब्द "वक्फा" से निकला है. इसका मतलब "रोकना" या "स्थिर करना" है. ऐसी संपत्ति या संसाधन जिन्हें धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए दे दिया जाता है, उसे वक्फ कहा जाता है. एक बार वक्फ घोषित किए जाने पर, इन संपत्तियों का स्वामित्व उस व्यक्ति (वाकिफ) के पास नहीं होता है बल्कि अल्लाह के पास चला जाता है. फिर इसका उपयोग समाज के लिए किया जाता है.
मोहम्मद गौरी और भारत में वक्फ की नींव
भारत में वक्फ की अवधारणा इस्लाम जितनी ही पुरानी है. वक्फ के सबसे पहले और महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक सुल्तान मुइज़ुद्दीन साम गोरी, जिसे मोहम्मद गौरी के नाम से भी जाना जाता है, के शासनकाल से जुड़ा है.
पृथ्वीराज चौहान से जीतने के बाद, 12वीं शताब्दी के आखिर में, मोहम्मद गौरी ने न केवल सैन्य ताकत के माध्यम से बल्कि इस्लामिक संस्थानों की स्थापना करके अपनी सत्ता को मजबूत किया. मोहम्मद गौरी ने इस्लामी शिक्षा और इबादत करने की जरूरत को समझते हुए मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव समर्पित किए.
इसे भारत में वक्फ के पहले उदाहरणों में से एक माना जाता है. इन गांवों से होने वाली आय मस्जिद के रखरखाव और उसके धार्मिक और परोपकारी कामों को करने के लिए उपयोग की जाती थी. गौरी ने इन संपत्तियों के प्रबंधन के लिए शैखुल इस्लाम को नियुक्त किया था.
दिल्ली सल्तनत और मुगल युग में वक्फ
धीरे-धीरे वक्फ दिल्ली सल्तनत के उत्तरी भारत में प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने लगा. इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खिलजी जैसे सुल्तानों ने बड़े पैमाने पर जमीनें, इमारतें और पैसे वक्फ के रूप में समर्पित किए. इन संपत्तियों का उपयोग मस्जिदों, मदरसों, सूफी दरगाहों और अनाथालयों के निर्माण के लिए किया गया.
मुगल साम्राज्य ने वक्फ को एक संस्थागत रूप देने का सोचा. अकबर, को अपनी प्रगतिशील नीतियों के लिए जाना जाता था. उसने सुन्नी और शिया दोनों समुदायों के लिए वक्फ संपत्तियां स्थापित कीं. अकबर के शासनकाल के दौरान, कई मस्जिदों, शैक्षिक संस्थानों और घरों को वक्फ की मदद से आर्थिक तौर पर मदद पहुंचाई. औरंगजेब ने भी इस्लामी संस्थानों को संरक्षित करने के लिए वक्फ संपत्तियों में काफी योगदान दिया.
17वीं शताब्दी तक, वक्फ भारत के सामाजिक-धार्मिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग बन गया था.
औपनिवेशिक शासन के दौरान चुनौतियां
18वीं शताब्दी में भारत में ब्रिटिश आने लगे थे. वक्फ संपत्तियों के लिए ये एक बड़ा मोड़ साबित हुआ. शुरुआत में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया और वक्फ से जुड़ी धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया. हालांकि, जैसे-जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना कंट्रोल बढ़ाना शुरू किया उसने वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया.
आजादी के बाद वक्फ की स्थिति
1947 में भारत की आजादी के बाद, वक्फ प्रणाली को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित और संरक्षित करने की जरूरतों को पहचानते हुए, भारतीय सरकार ने 1954 में वक्फ अधिनियम पारित किया. इस कानून ने वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना का प्रावधान किया गया.
1995 के वक्फ अधिनियम ने ढांचे को और मजबूत किया, वक्फ बोर्डों को वक्फ संपत्तियों का कानूनी संरक्षक बना दिया. प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक, वक्फ बोर्ड वर्तमान में पूरे भारत में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों को कंट्रोल करता है. इसकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ है. भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी वक्फ हिस्सेदारी है.