12 अप्रैल को कामदा एकादशी पर है व्रत रखने का विशेष महत्व, विष्णु जी के साथ ही हनुमान जी की पूजा का बन रहा है शुभ योग

इस बार 12 अप्रैल को मंगलवार और एकादशी साथ में पड़ रही है. मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है. इसलिए कामदा एकादशी पर व्रत करने का इस साल विशेष महत्व है.  

कामदा एकादशी
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST
  • कामदा एकादशी 12 अप्रैल को पड़ने वाली है
  • कामदा एकादशी की व्रत कथा महाभारत के समय युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण को सुनाई थी

कामदा एकादशी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है. इस बार ये एकादशी 12 अप्रैल को पड़ने वाली है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. ज्योतिष की मानें, तो इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मन की इच्छा पूरी करते हैं. इस बार 12 अप्रैल को मंगलवार और एकादशी साथ में पड़ रही है. मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है. इसलिए कामदा एकादशी पर व्रत करने का इस साल विशेष महत्व है. मंगलवार को एकादशी होने से मंगल ग्रह की भी विशेष पूजा बताई गई है.

शुभ मुहूर्त 

कामदा एकादशी व्रत

12 अप्रैल 

तिथि प्रारंभ

12 अप्रैल सुबह 4:30 बजे 

तिथि अंत  

13 अप्रैल सुबह 5:02 बजे 

पूजा का शुभ मुहूर्त

12 अप्रैल, दोपहर 11:57 बजे से 12:48 बजे तक

व्रत का पारण  

13 अप्रैल, दोपहर 1:39 बजे से शाम 4:12 बजे तक 

क्या है कामदा एकादशी व्रत कथा? 

दरअसल, ये कथा महाभारत के समय युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण सुनी थी. ये कथा चैत्र शुक्ल पक्ष के दिन सुनाई थी. कथा के मुताबिक, रतनपुर नाम का राज्य हुआ करता था, जहां राजा पुंडरिक रहते थे. रतनपुर बेहद ही सुंदर जगह हुआ करती थी, वहां अप्सराएं और गंधर्व भी रहते थे. उनमें ललित और ललिता नाम के गंधर्व पति-पत्नी भी थे.

एक दिन राजा के दरबार में जब गंधर्व ललित गा रहा था, तब गाते गाते उसका सुर बिगड़ गया था. जब इसका कारण पूछा गया तो उसने बताया कि वह अपनी पत्नी ललिता की याद में खो गया था और इसीलिए उसका सुर बिगड़ गया था. राजा ललित इससे बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया. ललिता को जब ये बात पता चली तो उसने अपने पति को श्राप से मुक्ति दिलाने का सोचा. वह कई अलग-अलग उपाय खोजने लगी. एक दिन ललिता की मुलाकात श्रृंगी नाम के एक ऋषि से हुई,  तब उन्होंने उसे चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी पर व्रत करने के लिए कहा. इस व्रत को जब उसने किया तब उसका पति फिर से ठीक हो गया. बस तभी से इस व्रत की महिमा है.  


 
 

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