Kanwar Yatra History: अलग-अलग जगह से लाकर भगवान शिव पर चढ़ाया गया था जल, फिर हुई थी विष की तपिश शांत, कुछ ऐसे शुरू हुई थी कांवड़ यात्रा 

इस कठिन यात्रा को करने के लिए आहार, विहार और व्यवहार तीनों का ध्यान रखा जाता है. खान-पान से लेकर आपके व्यवहार और आचरण में भी शुद्धता होनी बहुत जरूरी है, नहीं तो आपकी यात्रा अशुद्ध हो जाती है. 

Lord Shiva (Photo: Getty Images)
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी ,
  • 25 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 5:40 PM IST

सावन का पावन माह चल रहा है और यह महीना भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय है. न केवल इस मौसम में बारिश होती है, बल्कि शिव भक्त बाबा भोले का जल, दूध और अन्य तमाम सामग्रियों से अभिषेक भी करते हैं. भोले भंडारी के जलाभिषेक के लिए अलग-अलग तीर्थ और कुंभ स्थलों से भी जल लेकर श्रद्धालु शिवालय और ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करते हैं. इसे ही पूरा करने के लिए कांवड़ यात्रा निकाली जाती है. 

वाराणसी स्थित बाबा काशी विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए ज्यादातर श्रद्धालु संगम नगरी प्रयाग से गंगाजल लेकर आते हैं और बाबा विश्वनाथ पर अर्पित करते हैं. इस दौरान लगभग सवा सौ किलोमीटर की कठिन कांवड़यात्रा के दौरान तमाम नियम को भी ध्यान में रखना पड़ता है ताकि यात्रा की पवित्रता और शुद्धता पर आंच ना आए.

कांवड़ यात्रा के पीछे की कहानी
कांवड़ यात्रा के पीछे की पुरातन घटना महत्व और इसके लाभ के बारे में वाराणसी के ज्योतिषी पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि ये कहानी शिव जी से जुड़ी है. देवासुर संग्राम के वक्त समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर भगवान शिव ने लोक कल्याण किया था. लेकिन विष की तपिश से उनको काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. जिसको लेकर देवताओं ने यह तय किया कि अलग-अलग तीर्थ और कुंभ स्थलों से जल लाकर महादेव पर अर्पित किया जाए. जिससे उन्हें आराम मिलेगा. तभी से सावन के पवित्र माह में श्रद्धालु भी ऐसा करते चले आ रहे हैं और इसीलिए इसे कांवड़ यात्रा नाम दिया गया. 

कांवड़ के भी होते हैं कई नियम 
पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि इस कठिन यात्रा को करने के लिए आहार, विहार और व्यवहार तीनों का ध्यान रखा जाना चाहिए. खान-पान से लेकर आपके व्यवहार और आचरण में भी शुद्धता होनी बहुत जरूरी है नहीं तो आपकी यात्रा अशुद्ध हो जाती है. 

इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि कांवड़ उठाने से लेकर उसे रखने तक का अपना नियम है. ऐसे किसी भी स्थान पर जलपात्र वाले कावड़ को नहीं रखा जा सकता. दिन-रात कांवड़ यात्रा लेकर चलने वाले कांवड़ियों को शुद्धता का ख्याल रखना पड़ता है. इसलिए नित्य क्रिया या लघुशंका के वक्त भी इस जमीन पर न रखकर साफ सुथरे स्थान पर टांग दिया जाता है. 

उन्होंने बताया कि ऐसी भी कांवड़ यात्रा होती है जिसमें कांवड़िया अन्न-जल का त्याग करके सीधे गंगाजल लेकर बाबा के दरबार पहुंचते हैं, लेकिन ऐसा कम ही लोग कर पाते हैं. उन्होंने प्रयाग संगम से गंगाजल लेकर काशी विश्वनाथ को अर्पित करने के पीछे के महत्व के बारे में भी बताया. 


 

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