काठगढ़ महादेव मंदिर में औघड़दानी अद्भुत स्वरूप में विराजमान हैं. पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर मौजूद ये दुनिया का इकलौता ऐसा शिवमंदिर है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा है. यहां शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की आराधना की जाती है. महादेव के इस विशेष स्वरूप से एक कथा भी जुड़ी है.
खास है काठगढ़ का शिव मंदिर-
शिव के इस अद्भुत स्वरूप से जुड़ी यहां कई मान्यताएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि ग्रहों और नक्षत्रों में बदलाव के साथ ही शिवलिंग के इन दो भागों के बीच का अंतर घटता-बढ़ता रहता है. ग्रीष्म ऋतु में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और शीत ऋतु में फिर से एक रूप धारण कर लेता है. लोक मान्यता है कि काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं. शिवरात्रि का दिन इनके मिलन माना जाता है.
सिकंदर से जुड़ी कहानी-
एक मान्यता यह भी है कि शिवलिंग अष्टकोणीय है और काले-भूरे रंग का है. शिव रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊचांई 7-8 फीट और पार्वती के रूप में अराध्य का हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है. विश्व विजेता सिकंदर ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब पंजाब पहुंचा. तो इंट्री से पहले मीरथल नामक गांव में पांच हजार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी और यहीं से वह वापस चला गया था.
महाराजा रणजीत सिंह से जुड़ी कहानी-
आस्था और विश्वास का प्रतीक बन चुका ये स्थान बेहद खास है. काठगढ़ के इस शिवमंदिर से महाराजा रणजीत सिंह का नाम भी जुड़ा है. कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली, तो पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया. वह जब काठगढ़ पहुंचे, तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने सुंदर मंदिर बनवाया और वहां पूजा करके आगे निकले. मंदिर के पास ही बने एक कुएं का जल उन्हें इतना पसंद था कि वह हर शुभ कार्य के लिए यहीं से जल मंगवाते थे.
मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस मंदिर की महानता बहुत पुरानी है. उन्होंने बताया कि काठगढ़ महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि का दिन विशेष माना जाता हैं. क्योंकि उस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पाषाण रूप एक हो जाता है. महाशिवरात्रि का दिन विशेष इसलिए भी माना जाता हैं क्योंकि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. यही वजह है कि महाशिवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है. काठगढ़ महादेव के इस चमत्कार को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं.
(पठानकोट से पवन सिंह की रिपोर्ट)
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