ज्वालेश्वर महादेव के दर्शन से होती है हर मनोकामना पूर्ण, दूर-दूर से आते हैं भक्त

घने वनों के बीच बसे अमरकंटक तीर्थ के विषय में मान्यता है कि यहां के कण-कण में शिव का वास है. यहां कई प्राचीन शिव मंदिर हैं. इन्हीं में से एक है अमरकंटक से 10 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव मंदिर.

Jwaleshwar Temple (Credits: Trip Advisor)
gnttv.com
  • अमरकंटक ,
  • 30 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST
  • अमरकंटक के पास स्थित है ज्वालेश्वर मंदिर
  • प्राचीन शिव मंदिरों में से है एक

मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में अनूपपुर जिला स्थित है और जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर स्थित है अमरकंटक. भारत के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में से एक. मैकल पर्वत में बसा अमरकंटक पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है. बताया जाता है कि समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान में ही मध्य भारत की विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों का मेल होता है. 

अमरकंटक का बहुत से परंपराओं और किंवदंतियों से संबंध रहा है. कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी के रूप में यहां से बहती हैं और घने वनों के बीच बसे अमरकंटक तीर्थ के विषय में मान्यता है कि यहां के कण-कण में शिव का वास है.

यहां कई प्राचीन शिव मंदिर हैं. इन्हीं में से एक है अमरकंटक से 10 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव मंदिर.

ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की महत्वता: 

कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस मंदिर को स्थापित किया था. पुराणों में इस स्थान को महा रूद्र मेरु कहा गया है. यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति होती है. इसलिए ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है. 

यहां स्थापित बाणलिंग की कथा का जिक्र स्कंद पुराण में है. इस बाणलिंग पर दूध व शीतल जल अर्पित करने से सभी पाप, दोष और दुखों का नाश हो जाता है. 

पौराणिक कथा के अनुसार बली का पुत्र बाणासुर अत्यंत बलशाली और शिव भक्त था. बाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या कर वर मांगा कि उसका नगर दिव्य और अजेय हो. भगवान शिव को छोड़कर कोई और इस नगर में ना आ सके. इसी तरह बाणासुर ने ब्रह्मा और विष्णु भगवान से भी वर प्राप्त किए. तीन पुर का स्वामी होने से वह त्रिपुर कहलाया. 

बाणासुर के वध से प्रकट हुआ ज्वालेश्वर महादेव शिवलिंग: 

लेकिन बताया जाता है कि शक्ति के घमंड में बाणासुर उत्पात मचाने लगा. इसलिए भगवान शिव ने पिनाक नामक धनुष और अघोर नाम के बाण से बाणासुर पर प्रहार किया. इस पर बाणासुर अपने पूज्य शिवलिंग को सिर पर धारण कर महादेव की स्तुति करने लगा. 

उसकी स्तुति से शिव प्रसन्न हुए. बाण से त्रिपुर के तीन खंड हुए और नर्मदा के जल में गिर गए और वहां से ज्वालेश्वर नाम का तीर्थ प्रकट हुआ. भगवान शिव के छोड़े बाण से बचा हुआ ही यह शिवलिंग बाणलिंग कहलाया.  

जोहिला नदी का यही है उद्गम स्थल

पवित्र धाम अमरकंटक से 3 नदियों का उद्गम स्थल है. नर्मदा और सोन नदी अमरकंटक से निकली हैं, और तीसरी नदी जोहिला का उद्गम स्थल ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के निकट है. ऐसा कहा जाता है गंगोत्री का जल रामेश्वर में चढ़ाने में जितना पुण्य फल मिलता है उतना ही फल नर्मदा का जल ज्वालेश्वर महादेव में चढ़ाने से मिलता है. 

शिव महापुराण में भी इस स्थान का वर्णन मिलता है. शिव महा पुराण के अनुसार राक्षस तारकासुर के 3 पुत्र थे. तीनों ने ब्रह्मा की तपस्या करके त्रिपुर की रचना कराई और जिनके आतंक से पीड़ित होकर देवता भगवान शिव के पास गए. 

भगवान शिव ने क्रोध में तीनों पुरों  को नष्ट का दिया और एक पुर जलती हुई ज्वाला के रूप में धरती पर गिरता है. ज्वाला की भयावहता को देख लगा कि सृष्टि का विनाश हो जाएगा. ऐसे में देवताओं ने भगवान शिव से ज्वाला को शांत करने की प्रार्थना की. 

शिवजी ने उस ज्वाला को जल के रूप में परिवर्तित किया तो यह जोहिला नदी के रूप में यहां से निकली. 

पूरी होती हैं मनोकामनाएं: 

कहते हैं नर्मदा जल लाकर ज्वालेश्वर महादेव को अर्पण करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. सावन के महीने में यहां नर्मदा जल चढ़ाने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

 

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