Deepawali 2022: जानें दिवाली पर दीये जलाने का विशेष महत्व, शास्त्रों में क्यों माना जाता है शुभ

Deepawali 2022: दिवाली का त्योहार दीपों का त्योहार कहलाता है. दीये जलाये बिना इस पर्व को अधूरा माना जाता है. दीपों के इस त्योहार के दिन रोशनी का विशेष महत्व होता है. इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं.

जानें दिवाली पर दीये जलाने का विशेष महत्व, शास्त्रों में क्यों माना जाता है शुभ
शिवानंद शौण्डिक
  • नई दिल्ली,
  • 20 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:41 AM IST
  • कितने दीये जलाने से होता है शुभ
  • कोरोना के बाद दिवाली का उत्साह
  • अलग-अलग समुदायों में रोशनी के त्योहार का जिक्र

दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन पूरे घर को दीयों से सजाया जाता है. वैसे दिवाली पर लोग दीयों के साथ ही अन्य चीजों का भी प्रयोग करते है. लेकिन शास्त्रों में दिवाली के दिन दीये जलाने को विशेष महत्व दिया जाता है. आज दीपावली भारत में रहने वाले हर इंसान के लिए एक अहम त्योहार है. प्रकाश और उल्लास का पर्व दीपावली पूरे भारत के अलग-अलग समुदायों में भिन्न-भिन्न कारणों से मनाया जाता है. दीपावली मनाते तो सभी हैं लेकिन सभी में दीपक जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां प्रचलित हैं. आइए जानें.

5 दिनों तक चलता है दिवाली का उत्सव-

दिवाली का पर्व को प्रकाश का उत्सव माना जाता है. इस पर्व में दीये जलाने का बहुत महत्व होता है. रोशनी का पर्व माना जाने वाला यह पर्व साल के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक होने के साथ देश भर में मनाया जाने वाला एक सबसे बड़ा पर्व भी होता है. दिवाली उत्सव मुख्य रूप से पांच दिनों तक चलता है. जिसमें महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है और ये भाई दूज के दिन समाप्त होता है. दिवाली में मुख्य रूप से दीये जलाने का प्रचलन है. दिवाली के दिन दीपक जलाना न सिर्फ एक प्रथा है बल्कि इसे घर के सदस्यों के लिए भी शुभ माना जाता है. 

दिवाली पर दीये जलाने का महत्व-

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण सहित 14 वर्षों का वनवास पूरा करके लौटे थे. उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि थी. अयोध्या वासियों ने उनके आने की खुशी में उनके रास्ते में पक्तियों में दीप जलाए थे. दिपावली में आवली का अर्थ होता है पंक्ति दिपावली दीप और आवली शब्द से मिलकर बना है. उसी दिन से इस परंपरा का आगाज हुआ था.

दीए जलाने से घर में आती हैं खुशियां-

इसके अलावा माना जाता है कि दिवाली पर दीये जलाने से भगवान गणेश और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं. शास्त्रों में भी इस बात का वर्णन किया गया है कि दीए जलाने से घर में शुभता आती है और वातावरण में भी सकारात्मकता बनी रहती है. दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के आगमन के लिए घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है और साथ ही पूरे घर को रोशनी में की जाती है. इसी कारण से घर के हर कोने में दीये जलाए जाते हैं. जिससे घर में मां लक्ष्मी का आगमन हो सके. अंधकार से मां लक्ष्मी असप्रसन्न होती हैं और वापस लौट जाती हैं. दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा भी मिट्टी से बने दीयों से ही की जाती है. इस दिन सबसे पहले भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के आगे दीया अवश्य जलाना चाहिए. इसके बाद अपनी कुल देवी या कुल देवता और मां गंगा के नाम का दीपक अवश्य जलाएं.

कितने दीये जलाने से होता है शुभ-

ऐसी मान्यता है कि पांच दिवसीय पर्व दीपावली पर पहला दीपक धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जिस घर में दीपदान किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 दीये जलाने चाहिए और घर के भीतर भी हर एक कोने में 13 दीये जलाएं. इन दीयों की कुल संख्या 26 होनी चाहिए. ऐसा करने से माता लक्ष्मी का घर में आगमन होता है. लेकिन जब आप यम के नाम का दीपक बनाएं तब ध्यान रखें कि यह दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाएं. इस दीये को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग करें. इसमें सरसों का तेल डालें. यह दीपक घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख करके नाली या कूड़े के ढेर के पास रखें. 

दिवाली के दिन करें दीपदान-

दिवाली महोत्सव के तीसरे दिन को दीपावली कहा जाता है जो मुख्य पर्व माना जाता है. इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी गणेश पूजन किया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें भगवान विष्णु की अर्धांगिनी होने के साथ धन, वैभव, ऐश्वर्य व सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. दिवाली में मुख्य रूप से माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपो से वातावरण रौशन हो जाए. दीपावली की रात पहला दीया लक्ष्मी पूजा के दौरान जलाएं. ऐसी मान्यता है कि दिवाली के दिन पितरों और यम के लिए दीपदान करने के अलावा कुल देवी के नाम का दीपक जलाना न भूलें. 

अलग-अलग समुदायों में रोशनी के त्योहार का जिक्र-

राम भक्तों के अनुसार दीपावली वाले दिन अयोध्या के राजा श्रीराम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर के अयोध्या लौटे थे. उनके लौटने कि खुशी यह पर्व मनाया जाने लगा. जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को हुआ था. कृष्ण भक्तों की मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था. इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक घी के दीये जलाएं. सिखों के लिए भी दीपावली महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था और दिवाली ही के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहा किया गया था.

कोरोना के बाद दिवाली का उत्साह-

रोशनी का पर्व दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीये की रोशनी से ही घर रोशन होता है, अमावस्या की अंधेरी रात में दीये की जगमगाती रोशनी से चारों तरफ उजाला ही उजाला हो जाता है, अंधेरे को चीरते हुए खूबसूरत दियों के बगैर दीपावली पर्व अधूरा सा लगता है. पिछले कुछ वर्षों से कोरोना महामारी के चलते त्योहारों पर ग्रहण लग गया था, लेकिन इस महामारी ने लोगों को जीना सिखा दिया. लोगों ने चाइनीस चीजों का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर दिया है, जबकि अब देसी सभ्यता को अपना रहे हैं.

 

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