हरिद्वार में काली मंदिर की दिशा में गंगा दक्षिण की तरफ बहती है. इसलिए इस मंदिर को दक्षिण काली मंदिर कहते है. मान्यता है कि इस धाम की स्थापना का आदेश मां ने स्वयं अपने भक्त को दिया था. जिसके बाद 108 नरमुंडों के ऊपर इस मंदिर की स्थापना हुई. कहते है कि मां के इस सिद्धपीठ की महिमा कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर से कम नहीं है. गंगा की पावन धारा में बना एक ऐसा जागृत धाम, जहां गंगा दक्षिणवाहिनी होती है.
मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से अरदास लगाता है. माई उसके बड़े से बड़े विघ्न दूर कर देती है. मां काली को शनिवार का दिन बहुत प्रिय है. मां दुर्गा के इस दरबार में शनिवार के दिन मां काली बड़े से बड़ा संकट दूर करती है. इस दिन माता रानी का पसंदीदा भोग खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. माई को नारियल, गुलाब पुष्प, काला जामुन, मीठा पान भी अर्पण किया जाता है. नवरात्रों के दिनों में मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.
स्कंध पुराण में इस धाम का जिक्र-
मां काली के इस धाम का विवरण स्कंध पुराण में भी किया है. माना जाता है कि स्वय काल भैरव करते हैं इस काली पीठ की रक्षा. माना जाता है कि कलकत्ता के काली और शिव भक्त गुरु कामराज ने मां की मूर्ति को यहां स्थापित किया था. तभी से यहां पर मां काली लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती आ रही हैं. कहते है कि यहां पर काले और सफेद रंग के नाग-नागिन के जोड़े रहते हैं. ये केवल सावन के दिनों में ही दिखाई देते हैं. लेकिन आज तक इन्होंने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है.
नवरात्र में होती है विशेष पूजा-
धर्म नगरी हरिद्वार में नील पर्वत माला और गंगा की तलहटी में मां काली विराजमान है. मां काली के इस पवित्र मन्दिर के बारे में मान्यता है कि ऐसा मन्दिर या तो कोलकाता में है या फिर हरिद्वार में. नवरात्र के दिनों में यहां मां काली की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. ब्रह्मकुंड के पास बने मां काली के इस धाम की गाथा स्कंध पुराण में भी मिलती है. माना जाता है कि काल भैरव इस पीठ की स्वयं रक्षा करते है. कहते है दुनिया में जितने भी वाम मार्गी, दक्षिण मार्गी तंत्र साधना के साधक है वो जब तक सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर नहीं जाएंगे. तब तक उनकी साधना अधूरी रहेगी.
क्या है मां काली की कथा-
मां काली के इस चमत्कारिक धाम को लेकर कई कथाएं मिलती है. जो सिद्धपुरुष कामराज से जुड़ती है. इसीलिए मां का ये धाम कामराज पीठ, अमरा गुरु और दक्षिण काली के नाम से भी जाना जाता है. कथा कहती है कि इसी स्थान पर कामराज जी ने मां काली से साक्षात्कार किया था. कथा कहती है कि इस मंदिर की स्थापना कामराज गुरु ने मां काली के आदेश पर किया था. मां काली ने कामराज को स्वप्न दिया कि इस मंदिर की स्थापना मेरी इच्छा से करो. मां ने कहा कि इस मंदिर की स्थापना 108 नर मुंडों से होगी. तो कामराज ने कहा कि मैं 108 नरमुंड कहा से लाऊंगा. तब मां कालिका ने कहा कि ये महामशान है, यहां पर आने वाले मुर्दो को तुम जीवित करो. जब वो जीवित हो जाएं तो उनकी इच्छा से 108 नरमुंडों की बलि दो. कहते है कि इस तरह से इस दक्षिण काली मंदिर की स्थापना हुई. कथा कहती है कि इस गंगातट के कजरीवन में मां काली की प्रतिमा कहां से आई. ये कोई नहीं जानता. यहां माता की प्रतिमा लाखों साल से है..जो स्वयंभू है. गंगातट पर बना मां काली का दिव्य धाम, जहां भोलेनाथ के हलाहल विषपान की कथा जुड़ती है. जिससे गंगा की पावन धारा नीली हो गई और कजरीवन का ये क्षेत्र नीलधारा कहलाया.
महादेव के विषपान से जुड़ा है धाम-
मां खड्ग खप्पर वाली के इस धाम से सागर मंथन की कथा भी जुड़ती है. जब देव और दानव सागर को मथ रहे थे. तभी कालकूट विष निकला था. जिससे सारे संसार में त्राहिमाम मच गया था. दुनिया में सारे प्राणी मरने लगे. तब देवादिदेव महादेव ने हलाहल को अपने कंठ में धारण कर लिया. कथा कहती है कि जहर के प्रभाव से शिव के कंठ से भयंकर ज्वालाएं निकली. कथा कहती है कि तब महादेव ने यहीं पर आकर स्नान किया था. जिससे कजरीवन में गंगा की धारा नीली हो गई. कहते है कि सागर मंथन से निकले अमृत की कुछ बूंदे यहां गिर गई थी. इसीलिए महादेव ने यहा के ब्रह्मकुंड में स्नान किया. कथा कहती है कि शिव ने गंगा की जिस मुख्य धारा में स्नान किया, वह हलाहल विष के प्रभाव से नीली हो गई. गंगा की उसी धारा को ही नीलधारा कहते हैं. जिसका जल आज भी नील वर्ण का है. इसी नीलधारा के तट पर विराजमान होकर मां दक्षिण काली अनादिकाल से अपने भक्तों का कल्याण करती आ रही है.
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