जल्द ही होली का त्यौहार आने वाला है. होली आते ही लोगों का दिल खुशी और उमंग से भर जाता है. लेकिन बरसाना में इसका उत्साह अपने चरम पर होता है. यहां पूरी दुनिया में मशहूर लट्ठमार होली खेली जाती है. लट्ठमार होली वास्तविक होली उत्सव से काफी पहले होती है. इस साल होली का त्योहार 19 मार्च और होलिका दहन 18 मार्च को है जबकि लट्ठमार होली 12 मार्च और 13 मार्च को मनाई जाएगी. यह होली नंदगांव के पुरुषों और बरसाना की महिलाओं के बीच खेली जाती है. नंदगांव के पुरुषों का उद्देश्य बरसाना में राधा के मंदिर पर झंडा फहराना होता है जबकि बरसाना की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं.
बरसाना की लट्ठमार होली सबसे ज्यादा मशहूर
इस अवसर पर मेहमानों को भांग और ठंडाई परोसा जाता है. यूं तो मथुरा के कई गांवों में लट्ठमार होली मनाई जाती है लेकिन बरसाना की होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. पुराणों की माने तो ब्रज क्षेत्र में बरसाना, नंदगांव, वृंदावन कृष्ण और राधा और उनके दोस्तों का खेल का मैदान था. इस क्षेत्र में होली, कृष्ण, राधा, गोपियों और गोपों की अठखेलियों और छेड़खानियों के लिए मशहूर है.
कैसे हुई थी शुरुआत
किंवदंतियों के अनुसार, कहा जाता है कि सांवले रंग के कृष्ण को गोरे रंग की राधा से जलन होती थी. राधा की त्वचा के रंग पर सवाल पूछकर कृष्ण माता यशोदा को तंग करते थे. एक बार तंग आकर उसने कृष्ण से कहा कि वह रंग छिड़ककर उसकी त्वचा का रंग बदल सकता है. कृष्ण और दोस्तों ने इस मौके का इस्तेमाल राधा और दोस्तों पर शरारतें करने के लिए किया. ऐसा माना जाता है जब श्रीकृष्ण और उनके दोस्त, राधा और उसके दोस्तों पर रंग फेंकने आए थे, तब उनके दोस्तों को लकड़ी के डंडों और लाठी से पीटा गया था.
नवमी और दशमी तिथि को मनाई जाती है लट्ठमार होली
लट्ठमार होली से पहले नवमी और दशमी तिथि को मनाया जाता है. यह त्योहार बिना निमंत्रण के शुरू नहीं होता है. क्योंकि होली खेलने के लिए दोनों तरफ से निमंत्रण भेजे जाते हैं. बरसाना की महिलाएं मिठाई, गुलाल, इत्र, मटर, पूवा और अन्य व्यंजनों के साथ नंदगांव के लोगों को निमंत्रण भेजती हैं. नवमी तिथि को नंदगांव के पुरुष लट्ठमार होली खेलने बरसाना जाते हैं जबकि दसवीं तिथि को बरसाना के लोग नंद चौक पर होली खेलने जाते हैं. बता दें, बरसाना गांव उत्तर प्रदेश में मथुरा शहर से लगभग 45 किमी दूर स्थित है.
गोप और गोपियों की भूमिकाएं निभाते हैं लोग
लट्ठमार होली में, नंदगांव के पारंपरिक पोशाक में पुरुष गोप यानी कृष्ण के मित्र की भूमिका निभाते हैं जबकि बरसाना में, महिलाएं गोपियों यानी राधा की सहेलियों की भूमिका निभाती हैं. रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर पुरुष अपनी रक्षा के लिए लाठी या लाठी और ढाल लेकर बरसाना पहुंचते हैं. वे महिलाओं पर रंग फेंकते हैं और महिलाएं डंडों से लड़ती हैं. लट्ठमार होली की तैयारी पुरुष और महिलाएं दोनों पहले से करते हैं. हर साल लट्ठमार होली में एक-दूसरे को मात देने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जाते हैं.
पकड़े जाने पर साड़ी पहन कर करते हैं नृत्य
पुरुष अच्छी तरह से गद्देदार कपड़े पहने होते हैं क्योंकि वे पलटवार नहीं कर सकते हैं और महिलाओं से बचने की कोशिश करते रहते हैं. यदि किसी पुरुष पर रंग पड़ जाता है, तो उसे साड़ी पहन कर नृत्य करना पड़ता है. कहा जाता है कि बरसाना की गोपियों ने भगवान कृष्ण को भी इस तरह नृत्य कराया था. इस अवसर पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. अगले दिन, महिलाएं पुरुषों के साथ होली खेलने नंदगांव जाती हैं. आमतौर पर लोगों को इस अवसर पर चोट नहीं लगती है लेकिन अगर किसी को चोट लगती है तो वे मिट्टी लगाते हैं और त्योहार में हिस्सा लेने के लिए वापस लौट आते हैं.