हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करता है मां हिंगलाज शक्तिपीठ, ब्लूचिस्तान में भी बसा है मां का धाम

मां शक्ति के 52 शक्तिपीठो में से एक हैं मां हिंगलाज शक्तिपीठ. यह दो जगह स्थित है- एक पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में नानी की दरगाह के नाम से जाना जाता हैं और दूसरा भारत के मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के बाड़ी में, जहां मां के भक्त मां को ज्योति स्वरुप लाए थे और मां स्वयं प्रकट हो गयी थीं.

Hinglaj Mata (Photo: Wikipedia)
gnttv.com
  • रायसेन ,
  • 03 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 8:50 AM IST
  • देश-दुनिया में मां शक्ति के हैं 52 शक्तिपीठ 
  • एक पाकिस्तान के बलूचिस्तान में भी स्थित है

देश-दुनिया में मां शक्ति के 52 शक्तिपीठ हैं. जिनमें से एक हैं मां हिंगलाज शक्तिपीठ. विश्व में माँ हिंगलाज के दो शक्ति पीठ हैं- एक पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हैं जो नानी मां और नानी की दरगाह के नाम से प्रसिद्द है और दूसरा मध्य प्रदेश के बाड़ी में है स्थित है जो हिंगलाज के नाम से जाना जाता है.  

बताया जाता है कि रायसेन जिले के बाड़ी में मां के भक्त मां को ज्योति स्वरुप लाये थे और मां स्वयं प्रकट हो गयी थीं. यह जगह 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है. बताया जाता है कि मां में भोपाल रियासत की बेगम साहिबा का अभिमान चूर-चूर किया था.

आज विदेशों से भक्त नवरात्रि में मां के दर्शन करने आते हैं. लज्जा स्वरुप होने के कारण मां का नाम हिंगलाज पड़ा. 

क्या है इतिहास

मान्यता है कि रायसेन जिले के बाड़ी में 500 वर्ष पहले महात्मा भगवानदास को मां हिंगलाज स्वप्न में दिखाई पड़ी थीं और उनसे कहा कि वह उन्हें भारत ले जाएं. तब महात्मा भगवानदास ने प्रण किया और बलूचिस्तान से (अब पाकिस्तान में) मां को ज्योति के रूप में बाड़ी ले आये. 

उस समय इस इलाके को राम जानकी अखाड़े के नाम से जाना जाता था. यहां पर सिर्फ तपस्वी, साधू, संत ही पहुंच सकते थे. यहां उन्होंने ज्योति स्वरुप मां को मूर्ति के सामने स्थापित किया और फिर ज्योति मूर्ति में समाहित हो गयी. और आज यह स्थान हिंगलाज कहलाता है. 

हिंग का अर्थ हैं रौद्र रूप और लाज का अर्थ लज्जा है. मान्यता है कि भगवान शिव के सीने पर पैर रख कर मां शक्ति बहुत लज्जित हुई थीं और इस लिए रौद्र और लज्जा से मां का नाम हिंगलाज. 

प्रसिद्ध हैं कई कथाएं 

यह स्थान विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी में बसा है. बताया जाता है कि मां को एक बार बाड़ी के नबाव की बेगम ने प्रसाद स्वरुप मांस भेजा था लेकिन मां की कृपा से यह मिठाई में बदल गया. मां की महिमा को देख कर बेगम ने 70  एकड़ जमीन मां के मंदिर को दान कर दी थी. 

कहते हैं कि मां ने भारत वर्ष में दो धर्मो की परंपरा को जोड़ रखा है. आज भी उनकी अमर ज्योति अनवरत जल रही है. यहां पर मंदिर प्रांगण में महात्मा भगवानदास और पीरबाबा की समाधि एक साथ बनी हुई है. जो हिन्दू और मुस्लिम एकता की मिसाल है. 

यहां पर संस्कृत पाठशाला है और यज्ञ शाला है. 100 से अधिक विद्यार्थी यहां विद्या पातें हैं. वहीं श्रीराम मंदिर के प्राचीन शंख से रामनाम की ध्वनि सुनाई पड़ती है. कहतें हैं मां के लिए जात-पात का कोई बंधन नहीं होता हैं. भक्त दूर-दूर से मां के दर्शन के लिए आतें हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है. 

(राजेश रजक की रिपोर्ट)

 

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