Maha kumbh 2025: पैदा होते ही मां चल बसी, पिता ने छोड़ा तो 9 साल की उम्र में बन गए साधु, मिलिए प्रयागराज के सबसे छोटे बाबा से

प्रयागराज पहुंचे गंगापुरी को असम में लोग छोटे दादू के नाम से जानते हैं. गंगापुरी महाराज जूना अखाड़े से जुड़े हुए हैं और जूना अखाड़े में ही रह रहे हैं. जैसे ही इन्होंने संगम की रेती पर कदम रखा, साधु संत और तमाम लोग इन्हें देखने चले आए.

गंगापुरी बाबा
gnttv.com
  • प्रयागराज,
  • 30 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

प्रयागराज संगम की रेती पर दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला 13 जनवरी से शुरू हो रहा है. अखाड़ों से जुड़े नागा साधु संन्यासी, अघोरी अब कुंभ नगरी पहुंचने लगे हैं. इस बार साधु संतों के बीच सबसे कम हाइट के बाबा मेले में पहुंचे हैं. इनका नाम है बाबा गंगापुरी, जिनका कद केवल 3 फुट 8 इंच है और इस वजह से सबसे कम हाइट वाले बाबा अपने आप को एंटीक पीस कहते हैं.

असम से कुंभ मेला पहुंचे गंगापुरी बाबा की कद और काठी को देख हर कोई रुक जाता है और उनसे बात करते हैं. फोटो और सेल्फी लेते हैं लेकिन इन सब में सबसे खास बात ये है कि बाबा की हाइट जितनी रोचक और इनका रूप जितना आकर्षक है उतनी ही बाबा की कहानी भी आकर्षक है. बाबा की कहानी सुनकर हर किसी का दिल भर आता है.

प्रयागराज पहुंचे गंगापुरी को असम में लोग छोटे दादू के नाम से जानते हैं. गंगापुरी महाराज जूना अखाड़े से जुड़े हुए हैं और जूना अखाड़े में ही रह रहे हैं. जैसे ही इन्होंने संगम की रेती पर कदम रखा, साधु संत और तमाम लोग इन्हें देखने चले आए.

संगम किनारे पहुंचे छोटू दादा उर्फ गंगापुरी महाराज की उम्र लगभग 57 वर्ष है लेकिन इनको देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि उनकी उम्र 57 साल हो चुकी है. अभी भी यह 10 से 12 साल के बच्चे की तरह लगते हैं. इन्होंने 9 साल की आयु में ही संन्यास धारण कर लिया था और उसके बाद से ही यह अघोर साधना में जुड़ गए. बाबा श्मशान पर रहते हैं और श्मशान में ही अघोर साधना करते हैं. एक अघोरी की तरह जीवन बिताते हैं. बाबा ने कहा कि उनके लिए अघोर साधना ही सब कुछ है और अपने खाली समय में वह साधना में जुड़ जाते हैं.

हालांकि गंगा महाराज अपने जीवन के बारे में ऑन कैमरा बताने से मना करते हैं लेकिन अगर कोई उनसे पूछता है तो बिना रिकॉर्डिंग के वह अपनी सारी कहानी बताते हैं. इन्होंने बताया कि इनकी कहानी भगवान कृष्ण से मेल खाती है. आपको भी यह सुनकर अचंभा लग रहा होगा लेकिन कहानी सुनने के बाद आपको भी ऐसा ही लगेगा.

गंगापुरी महाराज बताते हैं कि उनके जन्म से पहले उनकी माता-पिता की 7 संतानें हुई लेकिन कोई जीवत नहीं बचा. जैसे ही उनका इस धरती पर जन्म हुआ वैसे ही उनकी मां चल बसीं. और बाद में उनके पिता ने भी उन्हें त्याग दिया. उनकी कद काठी को देखकर उनके पिता ने उन्हें अपने साथ रखने से मना कर दिया लेकिन कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोय.

बाबा बताते हैं कि उनकी मां की सबसे परम मित्र ने मां यशोदा की ही तरह उनका लालन पालन किया. तभी से उनके जीवन में गुरु माता ही सब कुछ है और वह अपनी गुरु माता को ही भगवान भी मानते हैं. बाबा ने यह भी बताया कि लोग जहां महाकुंभ में तमाम साधना करने आते हैं भगवान की खोज में आते हैं मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं लेकिन मैं ऐसा कुछ भी करने नहीं आया हूं, मैं यहां सिर्फ साधु संतों को देखने आया हूं और सबसे बड़ी बात मैं अपने आप की खोज में आया हूं.

बाबा का कहना है कि मनुष्य अगर अपने आप की खोज कर लेगा तो उसे भगवान से ऊपर दर्जा मिल जाएगा. ऐसे ही मैं भी कई वर्षों से अपनी खोज में हूं कि आखिर मैं कौन हूं कहां से आया हूं. मेरा काम क्या है? इन सवालों के जवाब ढूंढते हुए बाबा को कई साल बीत चुके हैं.

इसी संकल्प को लेकर बाबा ने 35 सालों से स्नान नहीं किया है. बाबा कहते हैं कि जब आदमी अपनी अंतरात्मा को शुद्ध कर लेता है तो शरीर अपने आप शुद्ध हो जाता है. बाबा के एक हाथ में भगवान शंकर का शिवलिंग है तो एक हाथ में एक हड्डी है जिसे बाबा रहस्यमई बताते हैं. बाबा का कहना है कि यह हड्डी अघोर साधना में प्रयोग की जाती है.

बाबा ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है और कुछ साल नौकरी भी की लेकिन इसके बाद उनका रुझान आध्यात्म की तरफ हो गया और वह पूरी तरह से अघोर साधना में जुट गए. गंगापुरी कहते हैं कि उनकी हाइट को लेकर कभी भी उन्हें निराश नहीं हुई. वह पूरे तरीके से संतुष्ट और खुश है.

-आनंद राज की रिपोर्ट

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