Mahakumbh 2025: महाकुंभ की शोभा बढ़ाने पहुंचे 'चाबी वाले बाबा,' जानिए क्या है इनकी चाबियों का राज

संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन में देश-दुनिया से साधू-संत पहुंच रहे हैं. यहां पहुंचे अलग-अलग बाबाओं और उनके रंग-ढंग को देखकर आप चौंक जाएंगे. आज हम आपको बता रहे हैं चाबी वाले बाबा के बारे में.

चाबी वाले बाबा
gnttv.com
  • प्रयागराज ,
  • 30 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

संगम की रेती पर लगे कुंभ नगरी इस समय बाबाओं की दुनिया नजर आने लगी है. महाकुंभ पहुंच रहे हर बाबा की अलग कहानी है. कोई ई रिक्शा वाले बाबा, कोई हाथ योगी वाले बाबा, कोई जानवर वाले बाबा, तो कोई घोड़े वाले बाबा... अपने खास अंदाज से कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. इसी कुंभ में बाबाओं की माला में टचाबी वाले बाबा' भी शामिल हैं जो अपने एक हाथ में 20 किलो की लोहे की चाबी लेकर घूम रहे है. 

इस भारी-भरकम चाबी की कहानी भी बड़ी ही रहस्यमयी है. यही कारण है कि लोग इन्हें रहस्यमई चाबी वाले बाबा के नाम से जानते हैं. बाबा के साथ आई गाड़ी में चाबी ही चाबी नजर आती हैं और बाबा की हर एक चाबी की हर यात्रा से जुड़ी कहानी है.

अपने वाहन से करते हैं देश की यात्रा 
आप को बता दें कि चाबी वाले बाबा की खासियत यह है कि वह अपने चार पहिया वाहन को पूरे देश में पैदल ही खींचकर यात्राएं करते रहते हैं और नए युग की कल्पना को लोगों तक पहुंचा रहे हैं. चाबी वाले बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है. वह उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले हैं. कहते हैं कि हरिश्चंद्र विश्वकर्मा का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया था. 

हालांकि, घरवालों के डर से वो कुछ बोल नहीं पाते थे, लेकिन आखिरकार जब वह 16 साल के हुए तो उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का फैसला कर लिया और घर से निकल गए. चूंकि हरिश्चंद्र विश्वकर्मा कबीरपंथी विचारधारा के थे, इसलिए लोग उन्हें कबीरा बाबा बुलाने लगे. अयोध्या से यात्रा कर वह अब प्रयागराज कुंभ नगरी में पहुंचे है.

चाबी के साथ की है पदयात्रा 
कबीरा बाबा कई साल से अपने साथ एक चाबी लिए हुए हैं. उस चाबी के साथ ही उन्होंने पूरे देश की पदयात्रा कर ली है. अपनी यात्रा और आध्यात्म के बारे में कबीरा बाबा बताते हैं कि उन्होंने सत्य की खोज की है. लोगों के मन में बसे अहंकार का ताला वह अपनी बड़ी-सी चाबी से खोलते हैं. वह लोगों के अहंकार को चूर-चूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाते हैं. अब बाबा के पास कई तरह की चाबियां मौजूद हैं. बाबा एक विश्वकर्मा समाज से जुड़े हुए हैं. लिहाजा खुद ही वह अपने हाथों से चाबी बना लेते हैं. इसलिए जहां भी जाते हैं यादगार के तौर पर वह चाबी बना लेते हैं. इसलिए उनकी हर यात्रा की याद के रूप में उनके पास चाबियां मौजूद हैं. 

साइकिल से शुरू की थी यात्रा 
चाबी वाले बाबा ने अपनी ये यात्रा कभी साइकिल से शुरू की थी और अब बाबा के पास एक रथ है. हालांकि, इस रथ में न किसी तरह का कोई इंजन लगा है और न ही किसी प्रकार की कोई घोड़े हैं. बाबा खुद ही अपने वाहन को खींचते हैं. बाबा ने अपने ही जुगाड़ से इसकी एक हैंडल बना रखी है जिसको बाबा घूमते है और जब चाहे रथ को दिशा दे देते हैं. बाबा किसी की मदद लेना पसंद नहीं करते हैं. उनका कहना है कि उनके बाजू इतनी मजबूत हैं कि वह इस रथ को खींच सकते हैं. बाबा ने हजारों किलोमीटर और कई जगह की यात्रा की है और अब कुंभ नगरी में बाबा जिधर से गुजरते हैं इनको देखने वाले लोगों की भीड़ लग जाती है. 

स्वामी विवेकानंद हैं आदर्श 
चाबी वाले बाबा स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मनाते हैं. उनका कहना है कि आध्यात्म की ओर पूरी दुनिया भाग तो रही है, लेकिन आध्यात्म कहीं बाहर नहीं है बल्कि वह इंसान के अंदर ही बसा है. उन्होंने अपनी चाबी के बारे में बताते हुए कहा कि इस चाबी में आध्यात्म और जीवन का राज छिपा है, जिसे वह लोगों को बताना चाहते हैं. बाबा का कहना है कि इस चाबी के राज के बारे में कोई जानना नहीं चाहता है, क्योंकि इसके लिए किसी के पास समय नहीं है. वह कहते हैं कि अगर वह किसी को रोककर कुछ कहते हैं तो लोग यह कहकर मुंह फेर लेते हैं कि बाबा मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं हैं. 

शायद लोगों को लगता है कि वह उनसे पैसे मांग रहे हैं, लेकिन असल बात ये है कि मैंने समाज में फैली बुराईयों और भ्रष्टाचार को खत्म कर एक नए युग की कल्पना की है और उसके लिये उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया है. पूरे कुंभ क्षेत्र में अब बाबाओ के रंग के साथ यह चाबी वाले बाबा का भी रंग देखने को मिल रहा है और जिधर से यह गुजरते हैं उधर देखने वालों की भीड़ जुट जाती है. 

(आनंद राज की रिपोर्ट)

 

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