महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में रोजाना लाखों लोग स्नान कर रहे हैं. संगम नगरी में पहले अमृत स्नान के दिन करोड़ों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई थी. प्रयागराज (Prayagraj Mahakumbh 2025) इस धार्मिक मेले की वजह से गुलजार है. लोगों का तांता लगा हुआ है.
महाकुंभ को साधु-संतों का समागम भी कहा जाता है. एक ही जगह पर हजारों साधु-संत सिर्फ यहीं देखने को मिलते हैं. श्रद्धालु स्नान करने के बाद साधु-संतों से आशीर्वाद लेते हैं. साथ ही उनके आशीष वचन भी सुनते हैं.
प्रयागराज महाकुंभ में कई सारे रिकॉर्ड बन रहे हैं. महाकुंभ में ऐसा ही एक नया रिकॉर्ड बनने जा रहा है. महाकुंभ में इस बार नागा पुरुषों के साथ महिलाओं (Female Naga Sadhu) का भी दीक्षा संस्कार होगा. यह एक नया इतिहास लिखने जा रहा है.
महिलाएं लेंगी सन्यास
महाकुंभ में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अखाड़ों (Mahakumbh Akhara) से जुड़ने में गहरी रुचि दिखाई है. अब प्रयागराज महाकुंभ (Prayagraj Mahakumbh) सबसे अधिक महिला संन्यासियों की दीक्षा का इतिहास लिखने जा रहा है.
इस बारे में सन्यासिनी श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की महिला संत दिव्या गिरी बताती हैं कि इस बार महाकुंभ में अकेले श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े में 200 से अधिक महिलाओं की संन्यास दीक्षा होगी. सभी अखाड़ों को अगर शामिल कर लिया जाए तो ये संख्या एक हजार का आंकड़ा पार कर जाएगी.
महिला नागा साधु
महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन है. इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है. गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है. महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी जरूर करना होता है.
गंगा के तट पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा दीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो गई है. संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है. इसमें निरंतर नागाओं की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके विस्तार की प्रक्रिया शनिवार से शुरू हो गई. इसके अलावा आज निरंजनी और आनंद अखाड़े की बारी है.
सबसे ज्यादा नागा साधु का अखाड़ा
भगवान शिव के दिगम्बर भक्त नागा सन्यासी महाकुम्भ में सबका ध्यान अपनी तरह खींचते हैं. यही वजह है कि महाकुम्भ में सबसे अधिक जन आस्था का सैलाब जूना अखाड़े के शिविर में दिखता है. अखाड़ों की छावनी की जगह सेक्टर 20 में गंगा का तट इन नागा संन्यासियों की उस परम्परा का साक्षी बना.
शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई है. नागा संन्यासियों की संख्या में जूना अखाड़ा काफी आगे है. इसमें अभी 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं तो वहीं निरंजनी अखाड़े में भी 5 लाख के ऊपर नागा सन्यासी हैं.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा संन्यासी सिर्फ कुंभ में बनते हैं. वहीं उनकी दीक्षा होती है. सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है. उसे तीन साल गुरुओं की सेवा करने और धर्म-कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है. इसी दौरान ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है.
अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है. यह प्रकिया महाकुम्भ में होती है जहां वह ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है.
महाकुम्भ में गंगा किनारे उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार महाकुम्भ की नदी में डुबकी लगवाई जाती है. अन्तिम प्रक्रिया में स्वयं का पिण्डदान और दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है. अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं.
कुंभ में होती है दीक्षा
प्रयाग के महाकुम्भ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है. इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है. जिससे यह पहचान हो सके कि उन्होंने दीक्षा कहां से ली है.