Mohini Ekadashi 2023: मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है भगवान विष्णु के नारी रूप की पूजा, जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि को भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस साल 1 मई 2023 को मोहिनी एकादशी है.

1 मई को है मोहिनी एकादशी
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 7:22 AM IST
  • 1 मई 2023 को मोहिनी एकादशी का रखा जाएगा व्रत
  • रवि और ध्रुव दो शुभ योग बन रहे

सनातन हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है. भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत को रखने से व्यक्ति के सारे दुख दूर हो जाते हैं.  हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं. इस साल 1 मई 2023 को मोहिनी एकादशी है. आइए एकादशी के मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व के बारे में जानते हैं.

30 अप्रैल की रात से होगी शुरुआत
एकादशी तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल 2023 को रात 08 बजकर 28 मिनट से होगी और समापन 1 मई को रात 10 बजकर 09 मिनट पर होगा. उदया तिथि को मानते हुए एकादशी 1 तारीख को मनाई जाएगी. 

दो शुभ योग
एकादशी तिथि के दिन दो शुभ योग बन रहे हैं. सुबह 05:41 बजे से 05:51 बजे तक रवि योग रहेगा. वहीं सुबह 11:45 बजे तक ध्रुव योग बना रहेगा. मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जीवन में सुख की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है.

मोहिनी एकादशी का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उससे अमृत कलश की प्राप्ति हुई. देवता और दानव दोनों ही पक्ष अमृत पान करना चाहते थे, जिसकी वजह से अमृत कलश की प्राप्ति को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद छिड़ गया. विवाद की स्थिति इतनी बढ़ने लगी कि युद्ध की तरफ अग्रसर होने लगी. ऐसे में इस विवाद को सुलझाने और देवताओं में अमृत वितरित करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया. असुरों को अपने माया जाल में फंसाकर रखा. इस दौरान देवताओं ने सारा अमृत ग्रहण कर लिया था और कीमती अमृत को असुरों के हाथों से बचा लिया गया. 

पूजन विधि 
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. इसके पश्चात कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करें. इसके बाद मोहिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें. विष्णु मंत्रों का जाप करें. दिन भर व्रत का पालन करें और विष्णु का स्मरण करते रहें. रात्रि में श्री हरि विष्णु का स्मरण करते हुए जागरण करें, उनके भजन-कीर्तन करें। अगले दिन, यानि द्वादशी तिथि को विष्णु पूजन के पश्चात दान दक्षिणा करें और अपने व्रत का पारण करें.

 

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