Shravan Special: यहां होती है खंडित शिवलिंग की पूजा, दूर-दूर से मनौती लेकर आते हैं श्रद्धालु, जानें भोले बाबा के गैवीनाथ धाम के बारे में

यूं तो शास्त्रों में खंडित प्रतिमा की पूजा निषेध मानी जाती है मगर सतना जिले के बिरसिंहपुर में खंडित शिवलिंग की पूरे श्रद्धा के साथ पूजा होती है. भोलेनाथ यहां शिवलिंग के रूप में चूल्हे से निकले थे

Gaivinath (Photo: Facebook)
gnttv.com
  • सतना,
  • 13 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 9:20 AM IST
  • बिरसिंहपुर कस्बे में भगवान भोलेनाथ तालाब किनारे शिवलिंग रूप में विराजते हैं
  • यहां पर खंडित शिवलिंग की पूजा होती है और लोग मन्नत मांगते हैं

अगर आपके घर में रखी किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा खंडित हो जाती है तो आप अनहोनी की आशंका मात्र से सिहर उठते हैं. जरा भी देरी किए बिना लोग खंडित मूर्ति को या तो बहते पानी में विसर्जित कर देते हैं या फिर किसी पेड़ के नीचे रख देते हैं. 

मगर आज आपकी हम बताएंगे एक ऐसी जगह के बारे में जहां खंडित शिवलिंग की आराधना होती है. जी हां, आपको शायद ही इस बारे में पता हो. लेकिन मध्यप्रदेश के सतना मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर कस्बे में खंडित शिवलिंग को पूजा जाता है. 

कहानी गैवीनाथ की उत्पत्ति की
बिरसिंहपुर कस्बे में भगवान भोलेनाथ तालाब किनारे शिवलिंग रूप में विराजते हैं.  गैवीनाथ ट्रस्ट के शिवकुमार श्रामाली ने बताया कि एक किवदंती के अनुसार, कभी यह देवपुर नगरी हुआ करती थी. यहां के राजा थे वीरसिंह जो उज्जैन महाकाल के अनन्य भक्त थे. राजा हर रोज उज्जैन जाकर महाकाल के दर्शन करते थे.

लेकिन जब राजा वृद्ध हो गए तो वह उज्जैन जाने में असमर्थ रहने लगे. इस पर उन्होंने महाकाल से देवपुर नगरी आने की प्रार्थना की. इस नगरी में गैवी अहीर के घर में चूल्हे से भगवान शिव निकले. भोलेनाथ ने गैवी के सपने में आकर बताया कि इस राज्य में तुम्हारा घर अतिशुद्ध है और यहं वह स्थान लेना चाहते हैं. गैवी ने अपनी पत्नी को बताया और फिर चूल्हे में जाकर देखा. 

इसके बाद राजा को पूरी बात बताई गई तो राजा ने उनके घर आकर से पूजापाठ कराया. राजा ने गैवी को कुछ गांव और सम्पत्ति देनी चाही पर गैवी ने सिर्फ इतना मांगा कि यह स्थान उनके नाम से जाना जाए. इसलिए यह स्थान गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है. और बाद में नगरी का नाम राजा के नाम पर बिरसिंहपुर हो गया. 

औरंगजेब की सेना ने किया शिवलिंग पर वार
बताया जाता है कि बुतपरस्ती के खिलाफ रहे औरंगजेब और उसकी सेना ने शिवलिंग के ऊपर तलवार से वार किया था. इस वार से शिवलिंग 5 हिस्सों में बंट गया. कहते हैं जब शिवलिंग पर पहला वार हुआ तो उससे गंगा की धारा बही. दूसरे वार से खून और मवाद बहने लगा. 

तीसरे वार से दूध की धारा, चौथे वार पर बिच्छु, बरैया और पांचवें वार में शिवलिंग से बड़ी मक्खियां निकलने लगीं. और मक्खियों ने औरंगजेब की सेना को काटना शुरू किया और खदेड़ दिया. बादशाह समेत सेना मूर्छित हो गई. इस करिशमे के बाद औरंगजेब ने भगवान से माफी मांगी और कहा कि अब वह हिन्दुओं की मूर्तियों की परीक्षा नहीं लेगा. 

कालांतर में शिवलिंग के दो घाव तो भर गए मगर आज भी शिवलिंग 3 हिस्सों में विभाजित दिखता है. पद्मपुराण के पाताल खण्ड में इसका वर्णन है.

मन्नत पूरी होने पर शंकर-पार्वती का गठबंधन
गैवीनाथ धाम आज अटूट श्रद्धा का केंद्र है. लोग बड़ी संख्या में यहां मनौती लेकर आते हैं. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु शिव और पार्वती का गठबंधन करते हैं. एक छोर से दूसरे छोर तक विशाल तालाब के ऊपर से शंकर-पार्वती का गठबंधन किया जाता है. सावन में यहां भक्तों का रेला उमड़ पड़ता है. जल और बिल्वपत्र चढ़ाने के लिए होड़ मच जाती है. 

हर सोमवार गैवीनाथ के अभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की अटूट भीड़ उमड़ती है. मगर महाशिवरात्रि और श्रावण मास का मेला देखते ही बनता है. उत्तराखंड के चारों धाम की यात्रा के बाद गंगोत्री के जल को गैवीनाथ शिवलिंग पर चढ़ाने का विशेष महत्व है.

(योगितारा की रिपोर्ट)


 

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