Narsimha Dwadashi 2024: होलिका दहन से पहले क्यों मनाई जाती है नरसिंह द्वादशी, क्या है इसका धार्मिक महत्व और कथा, भगवान विष्णु ने रौद्र रूप में लिया था अवतार

Narsimha Dwadashi Date: नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद नरसिंह भगवान ने कहा था कि जो भी भक्त इस दिन उनको श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करेगा, उनका पूजन और व्रत करेगा उसके जीवन से सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

(Photo Credit: PFA) 
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST
  • 21 मार्च 2024 को मनाई जाएगी नरसिंह द्वादशी 
  • नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु के शरीर का आधा हिस्सा मानव और आधा था शेर का 

हर साल होलिका दहन से पहले नरसिंह द्वादशी (Narasimha Dwadashi) मनाई जाती है. अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद  (Prahlad) के प्राण बचाने के लिए इस दिन भगवान विष्णु ((Lord Vishnu) ने रौद्र रूप में अवतार लिया था. नरसिंह भगवान एक खंभे को चीरते हुए बाहर आए थे. भगवान विष्णु के शरीर का आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था. इसीलिए इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा गया. इस दिन नरसिंह भगवान ने दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था. 

क्या है शुभ मुहूर्त
हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है. द्वादशी तिथि इस साल 21 मार्च की देर रात 2:22 बजे शुरू होगी और अगले दिन 22 मार्च को सुबह 4: 44 बजे खत्म होगी. इसके चलते इस बार 21 मार्च 2024 के ही दिन नरसिंह द्वादशी मनाई जाएगी. पूजा-अर्चना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6:24 बजे से 7:55 सबुह बजे तक है. इसके बाद दूसरा मुहूर्त सुबह 10:57 बजे से दोपहर 12:28 बजे तक है. 

पूजा विधि 
1. नरसिंह द्वादशी के दिन सुबह ब्रह्म मूहूर्त में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. 
2. फिर भगवान नरसिंह की तस्वीर के सामने व्रत का संकल्प लें. 
3. इसके बाद भगवान नरसिंह को चंदन, अबीर-गुलाल, पीले अक्षत, पीले पुष्प, दीप, नारियल, फल और पंचमेवा अर्पित करें. 
4. पूजा के दौरान ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्ज्वलंतं सर्वतोमुखम्. नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्. मंत्र का जाप कमसे कम 108 बार करें. 
5. नरसिंह भगवान से घर के सभी संकट दूर करने की प्रार्थना करें. 
6. व्रत वाले दिन नमक का सेवन न करें. 
7. नरसिंह द्वादशी के दिन भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की कथा पढ़ी जाती है. 
8. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती गाकर पूजा का समापन होता है. 
9. नरसिंह द्वादशी के अगले दिन स्नान करने के बाद किसी जरूरतमंद को दक्षिणा और सामर्थ्य के अनुसार दान देकर व्रत खोलें.

व्रत का महत्व
नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना और व्रत करने से भक्त की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं. घर-परिवार में खुशियां और बरकत आती हैं. ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद नरसिंह भगवान ने प्रह्लाद को भी वरदान दिया था कि जो भी भक्त इस दिन उनको श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करेगा, उनका पूजन या व्रत करेगा, उसके जीवन के शोक, दुख, भय और रोग दूर होंगे. भक्त  की हर मनोकामना पूरी होगी.

क्या है व्रत कथा
नरसिंह द्वादशी को नरसिंह जयंती के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप एक पापी राजा था. उसने कठिन तपस्ता करके ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर. ब्रह्मा जी से इस वरदान को पाने के बाद हिरण्यकश्यप को लगने लगा कि उसे अब कोई मार नहीं सकता है. वह अमर है. खुद को वह भगवान समझने लगा. सभी लोगों से भागवान विष्णु की जगह अपनी पूजा करने के लिए कहने लगा. ऐसा नहीं करने वाले को वह मार देता था. अपने राज्य में विष्णु भगवान की पूजा पर रोक लगा दिया था. लेकिन हिरण्यकश्यप पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के बड़े भक्त थे. इससे हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित था. 

उसने प्रह्लाद को बहुत प्रताड़ित किया. इसके बावजूद प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लगे रहे. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए कई बार प्रयास किए लेकिन प्रभु की कृपा से प्रह्लाद को कभी कुछ नहीं हुआ. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग से नहीं जलने का वरदान प्राप्त था. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के अग्नि में लेकर बैठने के लिए कहा. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ जबकि होलिका जलकर मर गई. इसके बाद हिरण्यकश्यप और क्रोधित हो गया. उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को लोहे के एक गर्म खंभे को गले लगाने के लिए कहा. उसने कहा अब देखता हूं कैसे विष्णु बचाते हैं. तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ. उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर जो न घर के बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था न पशु, भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों जो न शस्त्र थे न अस्त्र से हिरण्यकश्यप का वध किया और प्रह्लाद को जीवनदान दिया.

 

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