नवरात्रि के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है. इस अष्टमी को दुर्गा अष्टमी या महाअष्टमी भी कहा जाता है. नवमी के दिन नवरात्रि का समापन होता है. नवरात्रि में कन्या पूजन को महत्वपूर्ण माना जाता है. अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं कन्या पूजन की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
अष्टमी को माता महागौरी और नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि 22 अक्टूबर, रविवार को है. इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा अष्टमी तिथि पर ही असुरों का संहार करने के लिए प्रकट हुईं थीं. इसके अलावा इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है. नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है. इस बार नवमी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी.
महाअष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि आरंभ: 21 अक्टूबर रात्रि 9:53 बजे.
अष्टमी तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर सायं 7:58 बजे.
उदया तिथि के अनुसार 22 अक्टूबर को दुर्गाअष्टमी मनाई जाएगी.
ब्रह्म मुहूर्त: 22 अक्टूबर, प्रातः 4:45 बजे से 5:35 बजे तक.
विजय मुहूर्त: 22 अक्टूबर, दोपहर 1:59 बजे से 2:44 बजे तक.
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रातः 6:26 बजे से सायं 6:44 बजे तक.
कन्या पूजन: 22 अक्टूबर, प्रातः 6:26 बजे से कन्या पूजन कर सकते हैं।
नवमी तिथि शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 23 अक्टूबर, 04:45 एएम से 05:36 एएम तक.
अभिजित मुहूर्त: 11:43 एएम से 12:28 पीएम तक.
विजय मुहूर्त: 01:58 पीएम से 02:43 पीएम तक.
गोधूलि मुहूर्त: 05:44 पीएम से 06:09 पीएम तक.
अमृत काल: 07:29 एएम से 08:59 एएम तक.
निशिता मुहूर्त: 11:40 पीएम से 12:31 एएम तक
कन्या पूजन मुहूर्त: 23 अक्टूबर को कन्या पूजन मुहूर्त सुबह 6 बजकर 27 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.
इसके बाद कन्या पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 16 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.
ऐसे करें महागौरी की पूजा
1. महाअष्टमी पर घी का दीपक लगाकर देवी महागौरी का आह्वान करें.
2. मां को रोली, मौली, अक्षत, मोगरा पुष्प अर्पित करें.
3. इस दिन देवी को लाल चुनरी में सिक्का और बताशे रखकर जरूर चढ़ाएं. इससे मां प्रसन्न होती हैं.
4. नारियल या नारियल से बनी मिठाई का भोग लगाएं.
5. अंत में मां महागौरी की आरती करें.
कन्या पूजन विधि
1. कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें. इसके बाद कन्याओं का पूरे परिवार के साथ चावल और फूल के साथ स्वागत करें.
2. कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं और एक लड़के की आवश्यकता होती है. नौ कन्याओं को मां का स्वरूप और लड़के को भैरव का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है.
3. यदि आपको नौ कन्याएं नहीं मिल रही हैं तो आप जितनी कन्याएं हैं, उनका ही पूजन कर लें. बाकी कन्याओं के हिस्से का भोजन गाय को खिला दें.
4. सबसे पहले कन्याओं और लड़के के पैरों को स्वच्छ जल से धोएं और उन्हें आसन पर बिठाएं.
5. सभी कन्याओं और लड़के को तिलक लगाएं.
6. इसके बाद कन्याओं और भैरव स्वरूप लड़के की आरती करें.
7. कन्याओं को भोजन खिलाएं. कन्याओं को भोजन खिलाने से पहले मंदिर में मां को भोग अवश्य लगा लें.
8. कन्याएं जब भोजन कर लें तो फिर उन्हें प्रसाद के रूप में फल दें और अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अवश्य दें.
9. सभी कन्याओं और भैरव स्वरूप लड़के के चरण स्पर्श करें.
10. कन्याओं को सम्मान पूर्वक विदा करें. ऐसा माना जाता है कि कन्याओं के रूप में मां ही आती हैं.
संख्या अनुसार कन्या पूजा का फल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 1 कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, 2 कन्या पूजा से भोग, 3 कन्या पूजा से पुरुषार्थ, 4-5 कन्या पूजा से बुद्धि और विद्या, 6 कन्या पूजा से कार्य में सफलता, 7 कन्या पूजा से परमपद, 8 कन्या पूजा से अष्टलक्ष्मी और 9 कन्याओं की पूजा से सभी ऐश्वर्य प्राप्त होता है.
आयु के अनुसार कन्या पूजा का फल
2 वर्ष की कन्या पूजा से धन-ऐश्वर्य, 3 वर्ष की कन्या पूजा से धन-धान्य, 4 वर्ष की कन्या पूजा से परिवार का कल्याण, 5 वर्ष की कन्या पूजा से रोगों से मुक्ति, 6 वर्ष की कन्या पूजा से राजयोग, विद्या और विजय, 7 वर्ष की कन्या पूजा से ऐश्वर्य, 8 वर्ष की कन्या पूजा से कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता, 9 वर्ष की कन्या पूजा से शत्रुओं पर सफलता और 10 वर्ष की कन्या पूजा से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.