13 जनवरी 2025 से शुरू होने जा रहे कुंभ मेले में बाबाओं के दरबार सज चुका है. मेले में देश के कोने कोने से बाबाओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया है. कोई बाबा लग्ज़री गाड़ियों से पहुंच रहे हैं तो कोई साइकिल से. कोई गोल्डन बाबा है तो कोई घुड़सवार बाबा, इसी दौरान मेले में एक ऐसे बाबा का आगमन हुआ जिन्हें लोग तिरंगा बाबा कहते हैं. इन बाबा की खूबी ये है कि ये अपने साथ हर समय तिरंगा झंडा लेकर चलते हैं और जहां ये पहुंचते हैं वहां तिरंगा लगाकर उसकी पूजा करते हैं. राष्ट्रप्रेमी तिरंगा बाबा अपने राष्ट्रध्वज प्रेम के लिए जाने जाते हैं. इनके इष्टदेव भी तिरंगा हैं और धर्मध्वजा भी तिरंगा ही है. फिलहाल बाबा ने गंगा के तट पर संगम की रेती में तिरंगा लगाकर वहीं अपनी धूनी रमा ली है.
महाकुंभ में कहीं पर्यावरण बाबा तो कहीं ई-रिक्शा वाले बाबा, कहीं हाथ उठाने का संकल्प लेने वाले बाबा नजर आ रहे हैं. इस समय कुंभ मेला क्षेत्र में आप जिधर भी जाएंगे आपको चारों तरफ तरह-तरह के बाबाओं के रूप नजर आएंगे. कुछ एक ऐसे ही अजब गजब बाबा प्रयागराज के संगम की रेती पर बैठे हुए नजर आ रहे हैं. जब आप इन्हें ध्यान से देखेंगे तो यह किसी आसन पर नहीं बल्कि संगम की रेत पर ही बैठे नजर आएंगे और उनके आगे भारत का तिरंगा लहराते हुए नजर आएगा. अधिकतर यह देखा गया है कि बाबा केसरिया रंग के ध्वज को अपने साथ रखते हैं.
परिवार से नाराज हो कर बने साधु
भारत के हरियाणा के रहने वाले नरेश गिरी अपने परिवार से नाराज होकर साधु का वेश धारण कर लिया था. अब भारत के हर पवित्र मंदिर और पूजा स्थलों पर वे जाते हैं और वहां के दर्शन कर भारत में सब कुछ सकुशल रहे इसकी कामना भी करते हैं. बाबा का पूरा परिवार हरियाणा में रहता है, लेकिन अब उनसे इनका कोई संबंध नहीं है. जब बाबा को सांसारिक जीवन में कुछ नहीं मिला तो इन्होंने अपने दैनिक जीवन को त्याग कर सन्यास धारण कर लिया है. अपनों से ये इतना खफा हो गए कि सांसारिक जीवन को बिल्कुल ही त्याग दिया. अब वे केवल भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं.
क्यों खास हैं ये बाबा?
इन बाबा की सबसे खास बात ये है कि दूसरे संतों की तरह ना इनके पास कोई भगवान की मूर्ति है, ना कोई फोटो है. बस यह अपनी भगवान की धुनी लगाए बिना किसी आसन के संगम की रेती पर बैठकर ध्यान करते हर जगह नजर आ जाते हैं. बाबा भारत के झंडे के साथ ही दीखते हैं.
इनका कहना है कि मां और मातृभूमि सबसे ऊपर है. वे कहते हैं, “इसलिए मातृभूमि का ध्वज मैं अपने साथ लेकर चलता हूं. सोते उठते बैठते यह मातृभूमि का ध्वज मेरे साथ ही रहता है और जब मैं उठता हूं तो इसे प्रणाम करता हूं उसके बाद ही और कोई काम करता हूं.”
बता दें, जैसे ही बाबा संगम तट पर या संगम किनारे संगम की रेती पर बैठे नजर आते हैं बाकायदा लोग उनको पहले अपनी आंखों से निहारते हैं. इतना ही नहीं इसके बाद फौरन लोग उनके चरण स्पर्श करने उनके पास पहुंच जाते हैं, उनसे आशीर्वाद लेते हैं. कई लोग तो बाबा के साथ सेल्फी लेते भी नजर आते हैं.
(आनंद राज की रिपोर्ट)