हिंदी पंचांग के अनुसार, नवरात्रि (Navratri) का आखिरी दिन महानवमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मां दुर्गा के 9वें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है. इन्हें आदि शक्ति भगवती के नाम से भी जाना जाता है. इनकी अराधना करने से सभी आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में सुख की प्राप्ति होती है.
धार्मिक मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से भक्त को सिद्धि प्राप्त होती है और उन्हें मोक्ष मिलता है. कहा जाता है कि नवरात्रि के अन्य सभी दिनों के बराबर पुण्य लाभ केवल महानवमी के दिन व्रत रखते हुए मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधना से ही प्राप्त होता है.
मां सिद्धिदात्री पूजा विधि:
नवमी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके साफ कपड़ा धारण करें. स्नान के बाद कलश स्थापना के स्थान पर जाकर मां सिद्धिदात्री की प्रतिमा स्थापित करें. मां सिद्धिदात्री को प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि अर्पित करें. धूप-दीप, अगरवत्ती जलाकर आरती करें और मां के मन्त्रों का जाप करें.
मां सिद्धिदात्री का मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप:
चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल रंग की साड़ी पहने हुए कमल के आसन पर विराजमान हैं. उनके दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है.
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