केरल में आज से ओणम पर्व की शुरुआत हो चुकी है. ये पर्व 10 दिन तक मनाया जाता है. ओणम को मलयालम भाषा में थिरुवोणम भी कहते हैं. ओणम को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है.
क्यों मनाते हैं ओणम?
ऐसा कहा जाता है कि केरल में महाबलि नाम का एक असुर राजा था. उसके आदर सत्कार में ही ओणम का पर्व मनाया जाता है. ये त्योहार भगवान विष्णु के वामन अवतार को भी समर्पित है. ओणम के हर दिन का एक खास महत्व है. इस त्योहार में लोग अपने घरों को 10 दिनों तक फूलों से सजा कर रखते हैं और विधि विधान से विष्णु जी और महाबली की पूजा करते हैं. दक्षिण भारत के लोग यह मानते हैं कि ओणम के पहले दिन राजा बलि पाताल लोक से धरती पर आते हैं और अपनी प्रजा का हाल चाल लेते हैं.
ओणम पूजा विधि
ओणम के दिन सुबह-सुबह स्नानादि के बाद मंदिर जाकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. नाश्ते में केला पापड़ खाया जाता है. इसके बाद लोग ओणम पुष्पकालीनया पकलम बनाते हैं. इस दिन लोग अपने घर को फूलों से सजाते हैं. इसके अलावा ओणम पर्व पर केरल में नौका दौड़, भैंस और बैल दौड़ जैसी तरह-तरह की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है.
अलग-अलग दिनों का महत्व
ओणम का तीसरा दिन बहुत विशेष होता है. इस दिन थिरुवोणम यानी ओणम के 10वें दिन के लिए खरीदारियां की जाती हैं. वहीं चौथे दिन 10वें दिन के लिए अचार और आलू चिप्स जैसी चीजें तैयार की जाती हैं. पांचवें दिन नौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. इसे वल्लमकली के नाम से जाना जाता है. ओणम का 10वां दिन ज्यादा खास होता है. इस दिन राजा बलि का धरती पर आगमन होता है. इस दिन पुष्प कालीन बनाई जाती है.
2 साल बाद मनाया जा रहा है त्योहार
बता दें कि इस साल ओणम को लेकर लोगों में खासा उत्साह है. क्योंकि पिछले दो साल से कोरोना के चलते ये त्योहार नहीं मनाया गया था. मलयालम सौर कलैंडर के अनुसार, ओणम का त्योहार चिंगम महीने में मनाया जाता है. चिंगम को मलयालम लोग साल का पहला महीना मानते हैं. हिंदू कैलेंडर की बात करें तो चिंगम महीना का मतलब अगस्त या सितंबर होता है.