Kumbh Chavni Pravesh: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रयागराज (Prayagraj) में 13 जनवरी से लगने वाले महाकुंभ मेले (Mahakumbh Mela) में हिस्सा लेने के लिए देश के कोने-कोने से साधु और संत आ रहे हैं. 8 जनवरी को संगम नगरी में एक साथ तीन अखाड़ों का प्रवेश हुआ. प्रयागराज की सड़कों पर भव्य अंदाज में निर्वाणी, निर्मोही और दिगंबर अनि अखाड़े की पेशवाई निकाली गई. आइए जानते हैं कैसे होती है पेशवाई?
शाही ठाट-बाट के साथ लेते हैं महाकुंभ में हिस्सा
आपको मालूम हो कि सनातन परंपरा के 13 प्रमुख अखाड़े हैं. इन अखाड़ों के साधु-संत शाही ठाट-बाट के साथ महाकुंभ मेले में जब हिस्सा लेने आते हैं तब उन्हें पेशवा कहा जाता है. पेशवाई के दौरान राजा-महाराजाओं की तरह हाथी, घोड़ों और रथों पर साधु-संतों का शाही जुलूस निकलता है. श्रद्धालु संतों का स्वागत करते हैं.
आखिर नगर प्रवेश इतना अहम क्यों
महाकुंभ में नगर प्रवेश का मतलब है कि जब साधु-संत किसी शुभ मुहूर्त में नगर में प्रवेश करते हैं. वहां पड़ाव डालते हैं. इसके बाद महाकुंभ मेले की गतिविधियां शुरू होती हैं. किसी भी अखाड़े के नगर प्रवेश में सबसे आगे घुड़सवार पुलिस वाले होते हैं, जो एक कतारबद्ध तरीके से अखाड़े के आगे एक ढाल की तरह चलते हैं. इन घुड़सवार पुलिस वालों के पीछे अखाड़े का हाथी का जत्था मौजूद होता है, जिस पर अखाड़ों की अग्रिम सेना सवार होती है. दरअसल, वो साधु जो अखाड़ों के रक्षक दल में होते है वो अग्रिम पंक्ति में होते हैं.
ऊंटों पर सवार अखाड़ों का दूसरा जत्था
अग्रिम पंक्ति के पीछे ऊंटों पर सवार अखाड़ों का दूसरा जत्था होता है, जो अखाड़े के दूसरी पंक्ति के साधु होते हैं. यह सुरक्षा की दूसरी लेयर कही जाती है. इनके पीछे फिर अखाड़ों का अपना घुड़सवार दल रहता है, जो भाले और बरछी जैसे हथियारों से लैस होते हैं. उसके बाद बैंड बाजे और फिर नाचते गाते अखाड़े के साधुओं का पैदल जत्था होता है.
हर अखाड़े की होती है अपनी खासियत
हर अखाड़े के प्रवेश का अपना एक निश्चित समय और तरीका होता है. बुधवार को हाथी-घोड़ों और रथों पर सवार संत बैड-बाजे और ढोल नगाड़ों के बीच सुबह 11 बजे करीब संगम के लिए निकले. जगह-जगह संतों ने करतब दिखाए. तलवारें लहराईं. जगह-जगह फूल बरसा कर उनका स्वागत किया गया. हर अखाड़े की अपनी एक खासियत होती है, जो कुंभ के समय नगर प्रवेश करते वक्त दिखाई देती है.
13 प्रमुख अखाड़ों में वैरागी है दूसरा संप्रदाय
नगर प्रवेश में अखाड़ों की आध्यात्मिक शक्ति और संस्कृति का भव्य प्रदर्शन होता है. हर कुंभ में अखाड़े अपनी शोभायात्रा को सबसे शानदार और प्रभावशाली बनाने की कोशिश करते हैं. बता दें कि सनातन परंपरा के 13 प्रमुख अखाड़ों में वैरागी दूसरा संप्रदाय है. इस संप्रदाय के पास 3 अखाड़े हैं. तीनों अनि अखाड़ों के संत भगवान विष्णु के अनुयायी होते हैं. वैरागी संप्रदाय का पहला अखाड़ा है. गुजरात का श्री दिगंबर अनी अखाड़ा. इस अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है. दूसरा अखाड़ा है अयोध्या का श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा. वैष्णव संप्रदाय के तीनों अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा छोटे अखाड़े शामिल हैं. तीसरा है मथुरा का श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा. इस अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है. इस अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके हैं.
धर्म की रक्षा के लिए हुई थी स्थापना
दिगंबर अनि अखाड़े की स्थापना करीब 600 साल पहले धर्म की रक्षा के लिए अयोध्या में की गई थी. अनि का मतलब होता है समूह या छावनी. निर्मोही और निर्वाणी अखाड़े दिगंबर अखाड़े के सहायक के रूप में होते हैं. इस अखाड़े में 2 लाख से ज्यादा संत मौजूद हैं. दिगंबर अनि अखाड़ों के साधु-संतों की पहचान उनके सफेद कपड़े, तिलक व जटा जूट से होती है. एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भाला लेकर चलते हैं. यह मठ, मंदिर और सनातन की रक्षा के लिए मुगलों और अंग्रजों से लड़े थे. इनके इष्टदेव हनुमानजी हैं. इनकी धर्मध्वजा पर हनुमानजी विराजमान हैं.
संगम की रेती पर करेंगे जप-तप
13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ के लिए अब तक 10 अखाड़ों की पेशवाई निकल चुकी है. अब ये संत संगम की रेती पर जप-तप करेंगे. ये अखाड़े महाकुंभ के महाअनुष्ठान की रौनक हैं. भले ही महीनों बल्कि सालों से कुंभ की तैयारियां चल रही हों लेकिन दुनिया के लिए कुंभ का शंखनाद तभी होता है, जब कुंभ नगरी में ये अखाड़े प्रवेश करते हैं. महाकुंभ में अखाड़ों और उनके संतों की मौजूदगी करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होती है. करोड़ों लोगों की भीड़ के बीच ये दिव्य व्यक्तित्व अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करते हैं.