दूसरी जगहों पर भले ही दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम की आराधना के साथ होती हो, लेकिन धर्म की नगरी प्रयागराज में इसकी शुरुआत रावण पूजा और रावण की बारात यानी शोभायात्रा से होती है. सबसे पहले मुनि भारद्वाज के आश्रम में लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है. इसके बाद निकलती है महाराजा रावण की भव्य व अनूठी बारात जो दुनिया में दूसरी किसी जगह देखने को नहीं मिलती.
बैंड बाजे के साथ करीब एक किलोमीटर लंबी इस अनूठी व भव्य बारात में महाराजा रावण सिंहासन पर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं. प्रयागराज की श्रीकटरा रामलीला कमेटी उत्तर भारत की इकलौती ऐसी संस्था है जहां दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम के बजाय महाराजा रावण की पूजा के साथ होती है. महाराजा रावण को यहां उनकी विद्वता के कारण पूजे जाने की परम्परा है.
ज्ञानी और विद्वान रावण की बारात
यह बारात कोई आम बारात नही है. यह बारात है परम ज्ञानी और विद्वान रावण की. इस बारात मे बैंड-बाजे के साथ हजारों की संख्या मे लोग शामिल होते हैं. बाकायदा यहां शोभायात्रा भरद्वाज मुनि के मंदिर से उठती है और भव्य श्रृंगार के बाद यह बारात प्रयागराज के भारद्वाज मुनि के आश्रम से होते हुए शहर के कई इलाकों मे घूमती है. इस बारात में कई झांकियां भी निकाली जाती हैं.
क्या है मान्यता
इस बारात के पीछे एक पुरानी मान्यता है. कहते हैं की जब भगवान राम रावण का वध कर के अयोध्या लौट रहे थे तो उन का पुष्पक विमान यहीं प्रयाग में भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुका था और जब राम ने माता सीता के साथ भारद्वाज मुनि से मिलने का प्रयास किया तो ऋषि ने उन से मिलने से मना कर दिया था. क्योंकि राम ने एक ब्राहमण की हत्या की थी और उनके ऊपर एक ब्रह्म हत्या का पाप था.
इस पर भगवान् राम ने भारद्वाज ऋषि से क्षमा मांगी और प्रायश्चित स्वरुप प्रयाग के शिव कुटी घाट पर एक लाख बालू ( रेत) के शिवलिंगो की स्थापना की. साथ ही, रावण को यह वरदान दिया कि प्रयागराज में रावण की पूजा होगी और उसकी बारात के रूप में शोभा यात्रा भी निकाली जाएगी. तब से इस तरह धूमधाम से यह बारात निकाली जाती है.
(पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट)
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