होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. उसी दिन से होली की परंपरा शुरू हुई. बहुत से लोगों को शायद यह नहीं पता होगा कि बिहार का पूर्णिया ही वह स्थान है जहां कालांतर में होलिका दहन हुआ था. आज भी यहां लोग उस दिन को याद करते हैं जब होली की परंपरा यहां से शुरू हुई.
बनमनखी अनुमंडल स्थित सिकलीगढ़ धरहरा आज भी उस दिन का जीवंत गवाह है. हिरण्यकश्यप का वध यहीं हुआ था और वरदान के बावजूद होलिका जलकर भष्म हो गई थी. पूर्णिया जिला अंतर्गत सिकलीगढ़ धरहरा स्थल भगवान नरसिंह के अवतार स्थल के रूप में विख्यात है. प्रेम व भाईचारे की होली बनमनखी की देन है जो सम्पूर्ण भारत में हिन्दूओं का पावन पर्व है.
इतिहास के पन्नों में जिक्र
गुजरात राज्य के पोरबंदर में विशाल भारत मंदिर है. उस मंदिर में आज भी यह अंकित है. भगवान नरसिंह का अवतार स्थल, सिकलीगढ़ धरहरा, बनमनखी, जिला पूर्णिया, बिहार है. ब्रिटेन की विकिपीडिया एवं गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण के 31वें वर्ष के तीर्थांग में इस स्थल की महत्ता का जिक्र है.
4 एकड़ में बना है मंदिर
सिकलीगढ़ धरहरा में भगवान नरसिंह का 4 एकड़ में एक विशाल मंदिर परिसर बना हुआ है. जिसका निर्माण हाल के ही बीते वर्ष में हुआ है. वहीं, मंदिर परिसर में प्राचीन जमाने का एक भवन है जो खंडहर में तब्दील हो गया है. हालांकि, खंडहर में आज भी प्राचीन जमाने के अवशेष, पत्थर, अन्य सामग्री देखी जा सकती है.
वहीं, मंदिर कंस्ट्रक्शन के दौरान हाल ही के दिनों में एक बहुत बड़ा घैला मिला है जो लगभग 200 लीटर पानी भरने वाला घैला है. यह अतिप्राचीन जमाने का है. वहीं, परिसर के अंदर एक स्तंभ है जिसको लेकर ऐसी धारणा है कि यह स्तंभ उस चौखट का हिस्सा है, जहां राजा हिरण्यकश्यप का वध हुआ. यह स्तंभ 12 फीट मोटा और करीब 65 डिग्री पर झुका हुआ है.
क्या है पौराणिक कथा
प्राचीन मान्यता के आनुसार भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नरसिंह ने सिकलीगढ़ की पावन भूमि पर अवतार लिया. कहा जाता है कि राजा हिरण्यकश्यप राक्षसों का राजा था. उसका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था. वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु का भक्त है तो उसने प्रह्लाद को रोकने का काफी प्रयास किया.
लेकिन तब भी प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति कम नहीं हुई. यह देखकर हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. हिरण्यकश्यप की एक बहन थी- होलिका. उसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका से कहा. होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में प्रवेश कर गई लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से आग में भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई.
उसी तरह हिरण्यकश्यप को वरदान था कि न जमीन, न आकाश, न घर के अंदर, न बाहर, न कोई नर या जानवर, कोई उसे नहीं मार सकेगा. तब भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर वरदान के बिल्कुल विपरीत दरवाजे के चौखट पर नरसिंह स्वरूप में उसे अपनी जंघा पर रख कर उसका वध किया. तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में होली का त्योहार मनाया जाने लगा है.
(अमित सिंह की रिपोर्ट)